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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
राजा के आदेशानुरूप घोषणा की । विराट् राज्याभिषेक-समारोह में अभिषिक्त राजा भरत सिंहासन से उठा । स्त्रीरत्न सुभद्रा आदि से संपरिवृत राजा अभिषेक-पीठ से उसके पूर्वी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरा । अभिषेक-मण्डप से बाहर निकला । जहाँ आभिषेक्य हस्तिरत्न था, वहाँ आकर आरूढ हुआ । राजा भरत के अनुगत बत्तीस हजार प्रमुख राजा अभिषेक-पीठ स उसके उत्तरी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे । राजा भरत का सेनापतिरत्न, सार्थवाह आदि अभिषेक-पीठ से उसके दक्षिणी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे । आभिषेक्य हस्तिरत्न पर आरूढ राजा के आगे मंगल-प्रतीक खाना किया गये । शेष पूर्ववत् । तत्पश्चात् राजा भरत स्नानादि परिसंपन्न कर भोजन-मण्डप में आया, सुखासन पर बैठा, तेले का पारणा किया । भोजन-मण्डप से निकल कर वह अपने श्रेष्ठ उत्तम प्रासाद में गया । वहाँ मृदंग बज रहे थे । यावत् राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुखों का भोग करने लगा । प्रमोदोत्सव में बारह वर्ष पूर्ण हो गये । राजा भरत स्नान कर वहाँ से निकला, बाह्य उपस्थानशाला में आकर पूर्व की ओर मुँह कर सिंहासन पर बैठा । सोलह हजार देवों का यावत् सार्थवाह
आदि का सत्कार किया, सम्मान किया । उन्हें विदा किया । विदा कर वह अपने श्रेष्ठ-महल में गया । वहाँ विपुल भोग भोगने लगा ।।
[१२३] चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न-ये चार एकेन्द्रिय रत्न आयुधगृहशाला में उत्पन्न हुए । चर्मरत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न तथा नौ महानिधियां, श्रीगृह में, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न, ये चार मनुष्यरत्न, विनीता राजधानी में, अश्वरत्न तथा हस्तिरत्न, ये दो पञ्चेन्द्रियरत्न वैताढ्य पर्वत की तलहटी में और सुभद्रा स्त्रीरत्न उत्तर विद्याधरश्रेणी में उत्पन्न हुआ ।
[१२४] राजा भरत चौदह रत्नों, नौ महानिधियों, १६००० देवताओं, ३२००० राजाओं, ३२००० ऋतुकल्याणिकाओं, ३२००० जनपदकल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्व क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध, ३२००० नाटकों, ३६० सूपकारों, अठारह श्रेणी-प्रश्रेणिजनों, चौरासी लाख घोड़ों, चौरासी लाख हाथियों, चौरासी लाख रथों, छियानवै करोड़ मनुष्यों, ७२००० पुरवरों, ३२००० जनपदों, छियानवै करोड़ गाँवों, ९९००० द्रोणमुखों, ४८००० पत्तनों, २४००० कर्वटों, २४००० मडम्बों, २०००० आकरों, १६००० खेटों, १४००० संबाधों, छप्पन अन्तरोदकों तथा उनचास कुराज्यों, विनीता राजधानी का, समस्त भरतक्षेत्र का, अन्य अनेक माण्डलिक राजा, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुष, तलवर, सार्थवाह आदि का आधिपत्य पौरोवृत्य, भर्तृत्व, स्वामित्व, महत्तरत्व-आज्ञेश्वरत्व, सैनापत्य-इन सबका सर्वाधिकृत रूप में पालन करता हुआ, सम्यक् निर्वाह करता हुआ राज्य करता था । राजा भरत ने अपने कण्टकों की समग्र सम्पत्ति का हरण कर लिया, उन्हें विनष्ट कर दिया तथा अपने अगोत्रज समस्त शत्रुओं को मसल डाला, कुचल डाला । उन्हें देश से निर्वासित कर दिया । राजा भरत को सर्वविध औषधियां, रत्न तथा समितियाँ संप्राप्त थीं । अमित्रों का उसने मानभंग कर दिया । उसके समस्त मनोरथ सम्यक् सम्पूर्ण थे जिसके अंग श्रेष्ठ चन्दन से चर्चित थे, वक्षःस्थल हारों से सुशोभित था, प्रीतिकर था, श्रेष्ठ मुकुट से विभूषित था, उत्तम, बहुमूल्य आभूषण धारण किये था, सब ऋतुओं में खिलने वाले फूलों की सुहावनी माला से जिसका मस्तक शोभित था, उत्कृष्ट नाटक प्रतिबद्ध पात्रों- तथा सुन्दर स्त्रियों के समूह से संपरिवृत वह