________________
७५
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१३१ अपेक्षा से ६८७४-१०/१९ योजन है । भगवन् ! हैवमत क्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतारकैसी है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है । उसका स्वरूप आदि सुषम-दुःषमा काल के सदृश है ।।
[१३२] भगवन् ! हैमवतक्षेत्र में शब्दापाती नामक वृत्तवैताढ्यपर्वत कहाँ है ? गौतम ! रोहिता महानदी के पश्चिम में, रोहितांशा महानदी के पूर्व में, हैमवत क्षेत्र के बीचोंबीच है । वह १००० योजन ऊँचा है, २५० योजन भूमिगत है, सर्वत्र समतल है | उसकी आकृति पलंग जैसी है । लम्बाई-चौड़ाई १००० योजन है । परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से संपरिवृत है । शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत पर बहत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है । उस भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल, उत्तम प्रासाद है । वह ६२॥ योजन ऊँचा है, ३१। योजन लम्बाचौड़ा है । भगवन् ! वह शब्दापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! उस पर छोटी-छोटी चौरस बावड़ियों यावत् अनेकविध जलाशयों में बहुत से उत्पल हैं, पद्म हैं, जिनकी प्रभा, शब्दापाती के सदृश है । इसके अतिरिक्त, पल्योपम आयुष्ययुक्त शब्दापाती देव वहाँ निवास करता है । उसके ४००० सामानिक देव हैं । उसकी राजधानी अन्य जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में है । यावत् यह नाम शाश्वत है ।
[१३३] भगवन् ! वह हैमवतक्षेत्र क्यों कहा जाता है ? गौतम ! वह महाहिमवान् पर्वत से दक्षिण में एवं चुल्ल हिमवान् पर्वत से उत्तर में, उनके अन्तराल में है । वहाँ जो यौगलिक मनुष्य निवास करते हैं, वे बैठने आदि के निमित्त नित्य स्वर्णमय शिलापट्टक आदि का उपयोग करते हैं । उन्हें नित्य स्वर्ण देकर वह यह प्रकाशित करता है कि वह स्वर्णमय विशिष्ट वैभवयुक्त है । वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त हैमवत नामक देव निवास करता है । गौतम ! इस कारण वह हैमवतक्षेत्र कहा जाता है ।
[१३४] भगवन् ! जम्बूद्वीप में महाहिमवान् नामक वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हरिवर्षक्षेत्र के दक्षिण में, हैमवतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् है । वह पर्वत पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तरदक्षिण चौड़ा है । वह पलंग का-सा आकार लिये हुए है । वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है । वह २०० योजन ऊँचा है, ५० योजन भूमिगत है । वह ४२१०-१०/ १९ योजन चौड़ा है । उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम ९२७६-९११/१९ योजन लम्बी है । उत्तर में उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है । वह लवणसमुद्र का दो ओर से स्पर्श करती है। वह कुछ अधिक ५३९३१-६/१९ योजन लम्बी है । दक्षिण में उसका धनुपृष्ठ है, जिसकी परिधि ५७२९३-१०/१९ योजन है । वह रुचकसदृश आकार है, सर्वथा रत्नमय है, स्वच्छ है । अपने दोनों ओर वह दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों से घिरा हुआ है । महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर अत्यन्त समतल तथा रमणीय भूमिभाग है । वह विविध प्रकार के पंचरंगे रत्नों तथा तृणों से सुशोभित है । वहाँ देव-देवियाँ निवास करते हैं ।
[१३५] महाहिमवान्पर्वत के बीचोंबीच महापद्मद्रह है । वह २००० योजन लम्वा तथा १००० योजन चौड़ा है । वह दश योजन जमीन में गहरा है । वह स्वच्छ है, रजतमय तटयुक्त है । शेष वर्णन पद्मद्रह के सदृश है । उसके मध्य में जो पद्म है, वह दो योजन का