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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१२९
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है । गंगा महानदी के अनुरूप ही सिन्धु महानदी का आयाम-विस्तार है । इतना अन्तर हैसिन्धु महानदी उस पद्मद्रह के पश्चिम दिग्वर्ती तोरण से निकलती है, पश्चिम दिशा की ओर बहती है, सिन्ध्वावर्त कूट से मुड़कर दक्षिणाभिमुख होती हुई बहती है । फिर नीचे तिमिस्रा गुफा से होती हुई वह वैताढ्य पर्वत को चीरकर पश्चिम की ओर मुड़ती है । उसमें वहाँ १४००० नदियां मिलती हैं । फिर वह जगती को विदीर्ण करती हुई पश्चिमी लवणसमुद्र में मिलती है । उस पद्मद्रह के उत्तरी तोरण से रोहितांशा महानदी निकलती है । वह पर्वत पर उत्तर में २७६-६/१९ योजन बहती है । घड़े के मुंह से निकलते हुए पानी की ज्यों और से शब्द करती हुई वेगपूर्वक मोतियों के हार के सदृश आकार में पर्वत-शिखर से प्रपात तक कुछ अधिक एक सौ योजन परिमित प्रवाह के रूप में प्रपात में गिरती है । रोहितांशा महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक जिह्वाका है । उसका आयाम एक योजन है, विस्तार साढ़े बारह योजन है । उसका मोटापन एक कोस है । उसका आकार मगरमच्छ के खुले मुख के आकार जैसा है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है ।
रोहितांशा महानदी जहाँ गिरती है, वह रोहितांशाप्रपातकुण्ड है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई १२० योजन है । उसकी परिधि कुछ कम १८३ योजन है । उसकी गहराई दस योजन है। उस रोहितांशाप्रपात कण्ड के ठीक बीच में रोहितांशद्वीप है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई सोलह योजन है । उसकी परिधि कुछ अधिक पचास योजन है । वह जल से ऊपर दो कोश ऊँचा उठा हुआ है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ एवं सुकोमल है । उस रोहितांशाप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से रोहितांशा महानदी आगे निकलती है, हैमवत क्षेत्र की ओर बढ़ती है । १४००० नदियाँ उसमें मिलती हैं । उनसे आपूर्ण होती हुई वह शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत के आधा योजन दूर रहने पर पश्चिम की ओर मुड़ती है । वह हैमवत क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है । तत्पश्चात् २८००० नदियों के परिवार सहित-नीचे की ओर जगती को विदीर्ण करती हुई-पश्चिम-दिग्वर्ती लवणसमुद्र में मिल जाती है । रोहितांशा महानदी जहाँ से निकलती है, वहाँ उसका विस्तार साढ़े बारह योजन है । उसकी गहराई एक कोश है । तत्पश्चात् वह क्रमशः बढ़ती जाती है । मुख-मूल में उसका विस्तार १२५ योजन होता है, गहराई अढाई योजन होती है । वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों से संपरिवृत है ।
[१३०] भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! ग्यारह, सिद्धायतन, चुल्लहिमवान्, भरत, इलादेवी, गंगादेवी, श्री, रोहितांशा, सिन्धुदेवी, सुरादेवी, हैमवत तथा वैश्रवणकूट । भगवन् ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्ल हिमवानकूट के पूर्व में है । वह पांच सौ योजन ऊँचा है । मूल में पांच सौ योजन, मध्य में ३७५ योजन तथा ऊपर २५० योजन विस्तीर्ण है । मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक १५८१ योजन, मध्य में कुछ कम ११८६ योजन तथा ऊपर कुछ कम ७९१ योजन है । मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त एवं ऊपर तनुक है । उसका आकार गाय की ऊर्वीकृत पूँछ के आकार जैसा है । वहा सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है। वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है । सिद्धायतनकूट के ऊपर एक बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग है । उस भूमिभाग के ठीक बीच में एक