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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह दो ओर से लवणसमुद्र को छुए हए है । अपनी पूर्वी कोटि से पूर्वी लवणसमुद्र को तथा पश्चिमी कोटि से पश्चिमी लवणसमुद्र को । वह एक सौ योजन ऊँचा है । पच्चीस योजन भूगत है-वह १०५२-१२/१९ योजन चौड़ा है । उसकी बाहा-पूर्व-पश्चिम ५३५०-१५११/१९ योजन लम्बा है । उसकी जीवा-पूर्वपश्चिम लम्बी है । जीवा २४९३२ योजन एवं आधे योजन से कुछ कम लम्बी है । दक्षिण में उसका धनु पृष्ठ भाग परिधि की अपेक्षा से २५२३०-४/१९ योजन है । वह रुचकसंस्थान-संस्थित है-सर्वथा स्वर्णमय है । वह स्वच्छ, सुकोमल तथा सुन्दर है । वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो वनखंडों से घिरा हुआ है । चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर बहुत समतल और रमणीय भूमिभाग है | वह आलिंगपुष्कर के सदृश समतल है । वहां बहुत से वाणव्यन्तर देव तथा देवियाँ विहार करते हैं ।
__ [१२८] उस अति समतल भूमिभाग के ठीक बीच में पद्मद्रह है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । उसकी लम्बाई १००० योजन तथा चौड़ाई ५०० योजन है । उसकी गहराई दश योजन है वह स्वच्छ, सुकोमल, रजतमय, तटयुक्त, सुन्दर एवं प्रतिरूपहै । वह द्रह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से परिवेष्टित है । उस पद्मद्रह की चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । उन सीढ़ियों में से प्रत्येक के आगे तोरणद्वार बने हैं । वे नाना प्रकार की मणियों से सुसज्जित हैं । उस पद्मद्रह के बीचों बीच एक विशाल पद्म है । वह एक योजन लम्बा और एक योजन चौड़ा है । आधा योजन मोटा है । दश योजन जल के भीतर गहरा है । दो कोश जल ऊँचा उठ हुआ है । इस प्रकार उसका कुल विस्तार दश योजन से कुछ अधिक है । वह एक जगती-द्वारा सब ओर से घिरा है । उस प्रकार का प्रमाण जम्बूद्वीप के प्राकार के तुल्य है । उसका गवाक्षसमूह-भी प्रमाण में जम्बूद्वीप के गवाक्षों के सदृश हैं ।
वह पद्म के मूल वज्ररत्नमय हैं । कन्द-रिष्टरत्नमय है । नाल वैडूर्यरत्नमय है । बाह्य पत्र-वैडूर्यरत्न हैं । आभ्यन्तर पत्र-जम्बूनद स्वर्णमय है केसर-किज्जल्क तपनीय रक्त स्वर्णमय हैं । पुष्रास्थिभाग विविध मणिमय हैं । कर्णिका स्वर्णमय है । वह कर्णिका आधा योजन लम्बी-चौड़ी है, सर्वथा स्वर्णमय है । स्वच्छ-उज्ज्वल है । उस कर्णिका के ऊपर अत्यन्त समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । वह ढोलक पर मढ़े हुए चर्मपुट की ज्यों समतल है । उस भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन है । वह एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा तथा कुछ कम एक कोश ऊँचा है, सैकड़ों खंभों से युक्त है, सुन्दर एवं दर्शनीय है । उस भवन के तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे पाँच सौ धनुष ऊँचे हैं, अढ़ाई सौ धनुष चौड़े हैं तथा उनके प्रवेशमार्ग भी उतने ही चौड़े हैं । उन पर उत्तम स्वर्णमय छोटे-छोटे शिखर हैं । वे पुष्पमालाओं से सजे हैं । उस भवन का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय है । वह ढोलक पर मढ़े चमड़े की ज्यों समतल है । उसके ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका है । वह मणिपीठिका पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा अढाई सौ धनुष मोटी है, सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है । उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल शय्या है ।
वह पद्म दूसरे एक सौ आठ पद्यों से, जो ऊँचाई में, प्रमाण में आधे हैं, सब ओर से घिरा हुआ है । वे पद्म आधा योजन लम्बे-चौड़े, एक कोश मोटे, दश योजन जलगत