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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-३/१०३
हेतु रत्न, कटक तथा त्रुटित लिये । उत्कृष्ट त्वरित, तीव्र विद्याधर-गति द्वारा वे दोनों, राजा भरत था, वहाँ आये । वे आकाश में अवस्थित हुए । उन्होंने जय-विजय शब्दों द्वारा राजा भरत को वर्धापति किया और कहा-हम आपके आज्ञानुवर्ती सेवक हैं । यह कहकर विनमि ने स्त्रीरत्न तथा नमि ने रत्न, आभरण भेंट किये । राजा भरत ने उपहार स्वीकार कर नमि एवं विनमि का सत्कार किया, सम्मान किया । विदा किया । यावत अष्ट दिवसीय महोत्सव
आयोजित किया । पश्चात् दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकाला । उसने ईशान-कोण में गंगा देवी के भवन की ओर प्रयाण किया । शेष कथन सिन्धु देवी के प्रसंग समान है । विशेष यह कि गंगा देवी ने राजा भरत को भेंट रूप में विविध रत्नों से युक्त १००८ कलश, स्वर्ण एवं विविध प्रकार की मणियों से चित्रित-दो सोने के सिंहासन विशेषरूप से उपहृत किये। फिर राजा ने अष्टदिवसीय महोत्सव आयोजित करवाया ।।
[१०४] तत्पश्चात् वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला । उसने गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे दक्षिण दिशा के खण्डप्रपात गुफा की ओर प्रयाण किया । तब राजा भरत खण्डप्रपात गुफा आया । शेष कथन तमिस्रा गुफा के अधिपति कृतमाल देव समान है । केवल इतना सा अन्तर है, खण्डप्रपात गुफा के अधिपति नृत्तमालक देव ने प्रीतिदान के रूप में राजा भरत को आभूषणों से भरा हुआ पात्र, कटक-भेंट किये । नृत्तमालक देव को विजय करने के उपलक्ष्य में आयोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाया । शेष कथन सिन्धुदेवी समान है ।
सेनापति सुषेण ने गंगा महानदी के पूर्वभागवर्ती कोण-प्रदेश को, जो पश्चिम में महानदी से, पूर्व में समुद्र से, दक्षिण में वैताढ्य पर्वत से एवं उत्तर में लघु हिमवान् पर्वत से मर्यादित था, तथा सम-विषम अवान्तरक्षेत्रीय कोणवर्ती भागों को साधा । श्रेष्ठ, उत्तम रत्न भेट में प्राप्त किये । वैसा कर सेनापति सुषेण गंगा महानदी आया । उसने निर्मल जल की ऊँची उछलती लहरों से युक्त गंगा महानदी को नौका के रूप में परिणत चर्मरत्न द्वारा सेनासहित पार किया । जहाँ राजा भरत था, वहाँ आकर आभिषेक्य हस्तिरत्न से नीचे उतरा । उत्तम, श्रेष्ठ रत्न लिये, जहाँ दोनों हाथ जोड़े अंजलि बाँधे राजा भरत को जय-विजय समर्पित किये। राजा भरत ने सेनापति सुषेण द्वारा समर्पित रत्न स्वीकार कर सेनापति सुषेण का सत्कार किया, सम्मान किया । विदा किया । शेष कथन पूर्ववत् जानना । तत्पश्चात् एक समय राजा भरत ने सेनापतिरत्न सुषेण को बुलाकर कहा-जाओ, खण्डप्रपात गुफा के उत्तरी द्वार के कपाट उद्घाटित करो । शेष कथन तमिस्रा गुफा के समान है ।
___ फिर राजा भरत उत्तरी द्वार से गया । सघन अन्धकार को चीर कर जैसे चन्द्रमा आगे बढ़ता है, उसी तरह खण्डप्रपात गुफा में प्रविष्ट हुआ, मण्डलों का आलेखन किया । खण्डप्रपात गुफा के ठीक बीच के भाग से उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो बड़ी नदियाँ निकलती हैं । इनका वर्णन पूर्ववत् है । केवल इतना अन्तर है, ये नदियां खण्डप्रपात गुफा के पश्चिमी भाग से निकलती हुईं, आगे बढ़ती हुईं पूर्वी भाग में गंगा महानदी में मिल जाती हैं । शेष वर्णन पूर्ववत् । केवल इतना अन्तर है, पुल गंगा के पश्चिमी किनारे पर बनाया । तत्पश्चात् खण्डप्रपात गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट क्रौञ्चपक्षी की ज्यों जोर से आवाज करते हुए सरसराहट के साथ स्वयमेव अपने स्थान से सरक गये, चक्ररत्न द्वारा निर्देशित मार्ग का