Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 27
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्रकंपित अपनी शाखाओं के अग्रभाग से गिरे हुए फूलों से वे भरतक्षेत्र के अति समतल, रमणीय भूमिभाग को सुरभित बना देते थे । भरतक्षेत्र में उस समय जहाँ-तहाँ अनेक पद्मलताएँ यावत् श्यामलताएँ थीं । वे लताएँ सब ऋतुओं में फूलती थीं, यावत् कलंगियाँ धारण किये रहती थीं । उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ-तहाँ बहुत सी वनराजियाँ थीं । वे कृष्ण, कृष्ण आभायुक्त इत्यादि अनेकविध विशेषताओं से विभूषित थीं । पुष्प-पराग के सौरभ से मत्त भ्रमर, कोरंक, भृगारक, कुंडलक, चकोर, नन्दीमुख, कपिल, पिंगलाक्षक, करंडक, चक्रवाक, बतक, हंस आदि अनेक पक्षियों के जोड़े उनमें विचरण करते थे । वे वनराजियाँ पक्षियाँ के मधुर शब्दों से सदा प्रतिध्वनित रहती थीं । उन वनराजियों के प्रदेश कुसुमों का आसव पीने को उत्सुक, मधुर गुंजन करते हुए भ्रमरियों के समूह से परिवृत, दृप्त, मत्त भ्रमरों की मधुर ध्वनि से मुखरित थे । वे वनराजियाँ भीतर की ओर फलों से तथा बाहर की ओर पुष्पों से आच्छन्न थीं । वहाँ के फल स्वादिष्ट होते थे । वहाँ का वातावरण नीरोग था । वे काँटों से रहित थीं। तरह-तरह के फूलों के गुच्छों, लताओं के गुल्मों तथा मंडपों से शोभित थीं । मानो वे उनकी अनेक प्रकार की सुन्दर ध्वजाएँ हों । वावड़ियाँ, पुष्करिणी, दीर्घिका-इन सब के ऊपर सुन्दर जालगृह बने थे । वे वनराजियाँ ऐसी तृप्तिप्रद सुगन्ध छोड़ती थीं, जो बाहर निकलकर पुंजीभूत होकर बहुत दूर फैल जाती थीं, बड़ी मनोहर थीं । उन वनराजियों में सब ऋतुओं में खिलने वाले फूल तथा फलने वाले फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते थे । वे सुरम्य, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थीं । [३३] उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ-तहाँ मत्तांग नामक कल्पवृक्ष-समूह थे । वे चन्द्रप्रभा, मणिशिलिका, उत्तम मदिरा, उत्तम वारुणी, उत्तम वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श युक्त, बलवीर्यप्रद सुपरिपक्व पत्तों, फूलों और फलों के रस एवं बहुत से अन्य पुष्टिप्रद पदार्थों से संयोग से निष्पन्न आसव, मधु, मेरक, सुरा और भी बहुत प्रकार के मद्य, तथाविध क्षेत्र, सामग्री के अनुरूप फलों से परिपूर्ण थे । उनकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध-रहित थीं । इसी प्रकार यावत् अनेक कल्पवृक्ष थे । [३४] उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा था ? गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे । उनके चरण-सुन्दर रचना युक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार-स्वरूप कैसा था ? गौतम ! वे स्त्रियांउस काल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरियाँ थीं । वे उत्तम महिलोचित गुणों से युक्त थीं। उनके पैर अत्यन्त सुन्दर, विशिष्ट प्रमाणोपेत, मृदुल, सुकुमार तथा कच्छपसंस्थान-संस्थित थे। पैरों की अंगुलियाँ सरल, कोमल, परिपुष्ट-एवं सुसंगत थीं । अंगुलियों के नख समुन्नत, रतिद, पतले, ताम्र वर्ण के हलके लाल, शुचि, स्निग्ध थे । उनके जंघा-युगल रोम रहित, वृत्त, रम्यसंस्थान युक्त, उत्कृष्ट, प्रशस्त लक्षण युक्त, अद्वेष्य थे । उनके जानु-मंडल सुनिर्मित, सुगूढ तथा अनुपलक्ष्य थे, सुदृढ स्नायु-बंधनों से युक्त थे । उनके ऊरु केले के स्तंभ जैसे आकार से भी अधिक सुन्दर, घावों के चिह्नों से रहित, सुकुमार, सुकोमल, मांसल, अविरल, सम, सदृश-परिमाण युक्त, सुगठित, सुजात, वृत्त, गोल, पीवर, निरंतर थे । उनके श्रोणिप्रदेश अखंडित द्यूत-फलक जैसे आकार युक्त प्रशस्त, विस्तीर्ण, तथा भारी थे । विशाल, मांसल,

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