Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 31
________________ ३० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उस समय भरतक्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य होते हैं ? गौतम ! छह प्रकार के, पद्मगन्ध, मृगगंध, अमम, तेजस्वी, सहनशील तथा शनैश्चारी । [३९] गौतम ! प्रथम आरक का जब चार सागर कोडा-कोडी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है । उसमें अनन्त वर्ण, अनन्तगंध, अनन्तरस, अनन्तस्पर्श, अनन्त संहनन, अनन्त संस्थान, अनन्त-उच्चत्व, अनन्त आयु, अनन्त गुरु-लघु, अनन्त अगुरु-लघु, अनन्त उत्थान-कर्म-बल-वीर्य-पुरुषाकारपराक्रम इनक सब पर्याय की अनन्तगुण परिहानि होती है । जम्बूद्वीप के अन्तर्गत इस अवसर्पिणी के सुषमा नामक आरक में उत्कृष्टता की पराकाष्ठा-प्राप्त समय में भरतक्षेत्र का कैसा आकार स्वरूप होता है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल होता है । सुषम-सुषमा के वर्णन समान जानना । उससे इतना अन्तर है-उस काल के मनुष्य ४००० धनुष की अवगाहनावाले होते हैं । शरीर की ऊँचाई दो कोस, पसलियां १२८, दो दिन बीतने पर भोजन की इच्छा, यौगलिक बच्चों की चौसठ दिन तक सार-सम्हाल, और आयु दो पल्योपम की होती है । शेष पूर्ववत् । उस समय चार प्रकार के मनुष्य होते हैं-प्रवर-श्रेष्ठ, प्रचुरजंघ, कुसुम सदृश सुकुमार, सुशमन । [४०] गौतम ! द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी-काल का सुषम-दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है । उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय यावत् पुरुषकार-पराक्रमपर्याय की अनन्त गुण परिहानि होती है । उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया है-प्रथम विभाग, मध्यम त्रिभाग, अंतिम त्रिभाग । भगवन् ! जम्बूद्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम-दुषमा आरक के प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उस का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है । उसका पूर्ववत् वर्णन जानना । अन्तर इतना है-उस समय के मनुष्यों के शरीर को ऊँचाई २००० धनुष होती है | पसलिया चौसठ, एक दिन के बाद आहार की इच्छा, आयुष्य एक पल्योपम, ७९ रात-दिन अपने यौगलिक शिशुओं की सार-सम्हाल यावत् उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही होता है । भगवन् ! उस आरक के पश्चिम विभाग में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होता है । यावत् कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है । उस आरक के अंतिम तीसरे भाग से भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उन मनुष्यों के छहों प्रकार के संहनन, छहों प्रकार के संस्थान, शरीर की ऊँचाई सैकड़ों धनुष-परिमाण, आयुष्य जघन्यतः संख्यात वर्षो का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात वर्षों का होता है । अपना आयुष्य पूर्ण कर उनमें से कई नरक-गति में, कई तिर्यंच-गति में, कई मनुष्य-गति में, कई देव-गति में उत्पन्न होते हैं और सिद्ध होते हैं । यावत् समग्र दुःखों का अन्त करते हैं । [४१] उस आरक के अंतिम तीसरे भाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग अवशिष्ट रहता है तो ये पन्द्रह कुलकर उत्पन्न होते हैं-सुमति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमन्धर, क्षेमकर, क्षेमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान्, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, प्रसेनजित्, मरुदेव, नाभि, ऋषभ ।

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