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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
था, उसके रोम अति सूक्ष्म, सुकोमल एवं स्निग्ध थे, अपनी गति से दोड, मन वायु तथा गरुड़ की गति को जीतने वाला था, बहुत चपल और द्रुतगामी था । क्षमा में ऋषितुल्य थाप्रत्यक्षतः विनीत था । वह उदक, अग्नि, पत्थर, मिट्टी, कोचड़, कंकड़ों से युक्त स्थान, रेतीले स्थान, नदियों के तट, पहाड़ों की तलहटियाँ, ऊँचे-नीचे पठार, पर्वतीय गुफाएँ - इन सबको लांघने में समर्थ था । प्रबल योद्धाओं द्वारा युद्ध में पातित-दण्ड की ज्यों शत्रु की छावनी पर अतर्कित रूप में आक्रमण करने की विशेषता से युक्त था । मार्ग में चलने से होनेवाली थकावट के बावजूद उसकी आँखों से कभी आँसू नहीं गिरते थे । उसका तालु कालेपन से रहित था । वह समुचित समय पर ही हिनहिनाहट करता था । वह जितनिद्र-था । मूत्र, पुरीष- का उत्सर्ग उचित स्थान खोजकर करता था । कष्टों में भी अखिन्न रहता था । नाक मोगरे के फूल के सदृश शुभ था । वर्ण तोते के पंख के समान सुन्दर था । देह कोमल थी । वह वास्तव में मनोहर था ।
ऐसे अश्वरत्न पर आरूढ सेनापति सुषेण ने राजा के हाथ से असिरत्न ली । वह तलवार नीलकमल की तरह श्यामल थी । घुमाये जाने पर चन्द्रमण्डल के सदृश दिखाई देती थी । शत्रुओं का विनाश करनेवाली थी । मूठ स्वर्ण तथा रत्न से निर्मित थी । उसमें से नवमालिका के पुष्प जैसी सुगन्ध आती थी । विविध प्रकार की मणियों से निर्मित बेल आदि
चित्र थे । धार बड़ी चमकीली और तीक्ष्ण भी । लोक में वह अनुपम थी । वह बाँस, वृक्ष, भैंसे आदि के सींग, हाथी आदि के दाँत, लोह, लोहमय भारी दण्ड, उत्कृष्ट वज्र - आदि का भेदन करने में समर्थ थी । वह सर्वत्र अप्रतिहत थी- बिना किसी रुकावट के दुर्भेद्य वस्तुओं के भेदन में समर्थ थी ।
[८२] वह तलवार पचास अंगुल लम्बी, सोलह अंगुल चौड़ी और मोटाई अर्ध- अंगुल - प्रमाण थी ।
[८३] राजा के हाथ से उत्तम तलवार को लेकर सेनापति सुषेण, आपात किरातो से भिड़ गया । उसने आपात किरातों में से अनेक प्रबल योद्धाओं को मार डाला, मथ डाला तथा घायल कर डाला ।
[८४] सेनापति सुषेण द्वारा हत-मथित किये जाने पर, मेदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात बड़े भीत, त्रस्त, व्यथित, पीड़ायुक्त, उद्विग्न होकर घबरा गये । वे अपने को निर्बल, निर्वीर्य तथा पौरुष - पराक्रम रहित अनुभव करने लगे । शत्रु सेना का सामना करना शक्य नहीं है, यह सोचकर वे वहाँ से अनेक योजन दूर भाग गये । यों दूर जाकर वे एक स्थान पर आपस में मिले, सिन्धु महानदी आये । बालू के बिछौने तैयार किये । तेले की तपस्या की । वे अपने मुख ऊँचे किये, निर्वस्त्र हो घोर आतापना सहते हुए मेघमुख नामक नागकुमारों का, जो उनके कुल- देवता थे, मन में ध्यान करते हुए अभिरत हो गए । मेघमुख नागकुमार देवों के आसन चलित हुए । मेघमुख नागकुमार देवों ने अवधिज्ञान द्वारा आपात किरातों को देखा । उन्हें देखकर कहने लगे- जम्बूद्वीप के उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में सिन्धु महानदी पर आपात किरात हमारा ध्यान करते हुए विद्यमान हैं । देवानुप्रियो ! यह उचित है कि हम उन आपात किरातों के समक्ष प्रकट हों ।
इस प्रकार परस्पर विचार कर उन्होंने वैसा करने का निश्चय किया । वे उत्कृष्ट, तीव्र