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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चक्रवर्ती राजाओं के पूर्वाचरित तप के फल का एक भाग था । देवयोनि में भी अत्यन्त दुर्लभ था । उस पर फूलों की मालाएँ लटकती थीं, शरद् ऋतु के धवल मेघ तथा चन्द्रमा के प्रकाश के समान भास्वर था | एक सहस्र देवों से अधिष्ठित था । राजा भरत का वह छत्ररत्न ऐसा प्रतीत होता था, मानो भूतल पर परिपूर्ण चन्द्रमण्डल हो । राजा भरत द्वारा छुए जाने पर वह छत्ररत्न कुछ अधिक बारह योजन तिरछा विस्तीर्ण हो गया- ।
[८८] राजा भरत ने छत्ररत्न को अपनी सेना पर तान दिया । मणिरत्न का स्पर्श किया । उस मणिरत्न को राजा भरत ने छत्ररत्न के बस्तिभाग में स्थापित किया । राजा भरत के साथ गाथापतिरत्न था । वह अपनी अनुपम विशेषता-लिये था । शिला की ज्यों अति स्थिर चर्मरत्न पर केवल वपन मात्र द्वारा शालि, जौ, गेहूँ, मूंग, उर्द, तिल, कुलथी, षष्टिक, निष्पाव, चने, कोद्रव, कुस्तुंभरी, कंगु, वरक, रालक, धनिया, वरण, लौकी, ककड़ी, तुम्बक, बिजौरा, कटहल, आम, इमली आदि समग्र फल, सब्जी आदि पदार्थों को उत्पन्न करने में कुशल था । उस श्रेष्ठ गाथापति ने उसी दिन बोये हुए, पके हुए, साफ किये हुए सब प्रकार के धान्यों के सहस्रों कुंभ राजा भरत को समर्पित किये । राजा भरत उस भीषण वर्षा के समय चर्मरत्न पर आरूढ रहा, छत्ररत्न द्वारा आच्छादित रहा, मणिरत्न द्वारा किये गये प्रकाश में सात दिन-रात सुखपूर्वक सुरक्षित रहा ।।
[८९] उस अवधि में राजा भरत को तथा उसकी सेना को न भूख ने पीडित किया, न उन्होंने दैन्य का अनुभव किया और न वे भयभीत और दुःखित ही हुए ।
[९०] राजा भरत को इस रूप में रहते हुए सात दिन रात व्यतीत हो गये तो उसके मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ-कौन ऐसा है, जो मेरी दिव्य ऋद्धि तथा दिव्य द्युति की विद्यमानता में भी मेरी सेना पर युग, मूसल एवं मुष्टिका प्रमाण जलधारा द्वारा सात दिन-रात हए, भारी वर्षा करता जा रहा है । राजा भरत के मन में ऐसा विचार, भाव १६००० देव, जानकर चौदह रत्नों के रक्षक १४००० देव तथा २००० राजा भरत के अंगरक्षक देवयुद्ध हेतु सन्नद्ध हो गये । मेघमुख नागकुमार देव थे, वहाँ आकर बोले-मृत्यु को चाहने वाले, मेघमुख नागकुमार देवो ! क्या तुम चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत को नहीं जानते ? वह महा ऋद्धिशाली है । फिर भी तुम राजा भरत की सेना पर युग, मूसल तथा मुष्टिकाप्रमाण जलधाराओं द्वारा सात दिन-रात हुए भीषण वर्षा कर रहे हो । तुम्हारा यह कार्य अनुचित है-तुम अब शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ, अन्यथा मृत्यु की तैयारी करो ।
जब उन देवताओं ने मेघमुख नागकुमार देवों को इस प्रकार कहा तो वे भीत, त्रस्त, व्यथित एवं उद्विग्न हो गये, बहुत डर गये । उन्होंने बादलों की घटाएँ समेट लीं । जहाँ आपात किरात थे, वहाँ आए औल बोले-राजा भरत महा ऋद्धिशाली है । फिर भी हमने तुम्हारा अभीष्ट साधने हेतु राजा भरत के लिए उपसर्ग-किया । अब तुम जाओ, स्नान करो, गीली धोती, गीला दुपट्टा धारण किए हुये, वस्त्रों के नीचे लटकते किनारों को सम्हाले हुए श्रेष्ठ, उत्तम रत्नों को लेकर हाथ जोड़े राजा भरत के चरणों में पड़ों, उसकी शरण लो । उत्तम पुरुष विनम्र जनों के प्रति वात्सल्य-भाव रखते हैं, उनका हित करते हैं । तुम्हें राजा भरत से कोई भय नहीं होगा । मेघमुख नागकुमार देवों द्वारा यों कहे जाने पर वे आपात किरात उठे । स्नान किया यावत् श्रेष्ठ, उत्तम रत्न लेकर जहाँ राजा भरत था, वहाँ आये । हाथ जोड़े, राजा भरत