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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - १/२०
लवणसमुद्र के पूर्व में है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा और उत्तर-दक्षिण चौड़ा है, पर्यंक-संस्थानसंस्थित है । वह दोनों तरफ लवण समुद्र का स्पर्श किये हुए है । वह गंगा तथा सिन्धु महानदी द्वारा तीन भागों में विभक्त है । वह २३८ - ३/१९ योजन चौड़ा है । उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम में १८९२ - ७ ॥ / १९ योजन लम्बा है । उसकी जीवा उत्तर में पूर्व-पश्चिम लम्बी है, लवणसमुद्र का दोनों ओर से स्पर्श किये हुए है । इसकी लम्बाई कुछ कम १४४७१३/१९ योजन है । उसकी धनुष्य-पीठिका दक्षिण में १४५२८ - ११/१९ योजन है । यह प्रतिपादन परिक्षेप - परिधि की अपेक्षा से है ।
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भगवन् ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र का आकार स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है । वह मुरज या ढोलक के ऊपरी भाग जैसा समतल है, कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणियों से सुशोभित है । उत्तरार्ध भरत में मनुष्यों का आकार -स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरत में मनुष्यों का संहनन आदि विविध प्रकार का है । वे बहुत वर्षों आयुष्य भोगकर यावत् सिद्ध होते हैं, समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ।
[२१] भगवन् ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में ऋषभकूट पर्वत कहाँ गौतम ! हिमवान् पर्वत के जिस स्थान से गंगा महानदी निकलती है, उसके पश्चिम में, जिस स्थान से सिन्धु महानदी निकलती है, उनके पूर्व में, चुल्लहिमदंत वर्षधर पर्वत के दक्षिणी मेखलासन्निकटस्थ प्रदेश में है । वह आठ योजन ऊँचा, दो योजन गहरा, मूल में आठ योजन चौड़ा, बीच में छह योजन चौड़ा तथा ऊपर चार योजन चौड़ा है । मूल में कुछ अधिक पच्चीस योजन, मध्य में कुछ अधिक अठारह योजन तथा ऊपर कुछ अधिक बारह योजन परिधि युक्त है । मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त तथा ऊपर पतला है । वह गोपुच्छ-संस्थान- संस्थित है, सम्पूर्णतः जम्बूनद-स्वर्णमय है, स्वच्छ, सुकोमल एवं सुन्दर है । वह एक पद्मवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है । वह भवन एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा, कुछ कम एक कोस ऊँचा है । वहाँ उत्पल, पद्म आदि हैं । ऋषभकूट के अनुरूप उनकी अपनी प्रभा है । वहाँ परम समृद्धिशाली ऋषभ देव का निवास है, उसकी राजधानी है, इत्यादि पूर्ववत् जान लेना ।
वक्षस्कार - १ - का मुनिदीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
वक्षस्कार-२
[२२] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल है ? गौतम ! प्रकार का, अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल । अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, सुषम- सुषमाकाल, सुषमाकाल, सुषम-दुःषमाकाल, दुःषमसुषमाकाल, दुःषमाकाल, दुःषम- दुःपमाकाल । उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, दुःपम-दुःषमाकाल यावत् सुषम-सुषमाकाल । भगवन् ! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास - निःश्वास हैं ? गौतम ! असंख्यात समयों के समुदाय रूप सम्मिलित काल को आवलिका कहा गया है । संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास तथा संख्यात आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है ।
[२३] हृष्ट-पुष्ट, अग्लान, नीरोग मनुष्य का एक उच्छ्वास- निःश्वास प्राण कहा