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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
दो भागों के रूप में निर्मित, समस्थित कपाट इतने सघन-निश्छिद्र या निविड हैं, जिससे गुफाओं में प्रवेश करना दुःशक्य है । उन दोनों गुफाओं में सदा अंधेरा रहता है । वे ग्रह, चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्रों के प्रकाश से रहित हैं, अभिरूप एवं प्रतिरूप हैं । उन गुफाओं के नाम तमिस्रगुफा तथा खंडप्रपातगुफा हैं । वहाँ कृतमालक तथा नृत्यमालक दो देव निवास करते हैं । वे महान् ऐश्वर्यशाली, द्युतिमान्, बलवान्, यशस्वी, सुखी तथा भाग्यशाली हैं । पल्योपमस्थितिक हैं। उन वनखंडों के भूमिभाग बहुत समतल और सुन्दर हैं । वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में दश-दश योजन की ऊँचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ हैं । वे पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी हैं । उनकी चौड़ाई दश-दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी ही है । वे दोनों पार्श्व में दो-दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो-दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं । वे पद्मवरवेदिकाएं ऊँचाई में आधा योजन, चौड़ाई में पाँच सौ धनुष तथा लम्बाई में पर्वत-जितनी ही हैं । वनखंड भी लम्बाई में वेदिकाओं जितने ही हैं ।
भगवन् ! विद्याधर-श्रेणियों की भूमि का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका भूमिभाग बड़ा समतल रमणीय है । वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों समतल है । वह बहुत प्रकार के मणियों तथा तृणों से सुशोभित है । दक्षिणवर्ती विद्याधरश्रेणि में गगनवल्लभ आदि पचास विद्याधर नगर हैं- । उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणि में रथनूपुरचक्रवाल आदि आठ नगर हैं- । इस प्रकार दक्षिणवर्ती एवं उत्तरवर्ती दोनों विद्याधर-श्रेणियों के नगरों की संख्या ११० है । वे विद्याधर-नगर वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध हैं । वहाँ के निवासी तथा अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति वहाँ आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते हैं । यावत् वह प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है । उन विद्याधरनगरों में विद्याधर राजा निवास करते हैं । वे महाहिमवान् पर्वत के सदृश महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र संज्ञक पर्वतों के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए हैं । भगवन् ! विद्याधरश्रेणियों के मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! वहाँ के मनुष्यों का संहनन, संस्थान, ऊँचाई एवं आयुष्य बहुत प्रकार का है । वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं । उन विद्याधर-श्रेणियों के भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर दश-दश योजन ऊपर दो आभियोग्य-श्रेणियां, व्यन्तर देव-विशेषों की आवास-पंक्तियां हैं । वे पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी हैं । उनकी चौड़ाई दश-दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी है । वे दोनों श्रेणियां अपने दोनों ओर दो-दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो-दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं। लम्बाई में दोनों पर्वत-जितनी हैं ।
भगवन् ! आभियोग्य-श्रेणियों का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका बड़ा समतल, रमणीय भूमिभाग है । मणियों एवं तृणों से उपशोभित है । मणियों के वर्ण, तृणों के शब्द आदि अन्यत्र विस्तार से वर्णित हैं । वहाँ बहुत से देव, देवियां आश्रय लेते हैं, शयन करते हैं, यावत् विशेष सुखों का उपयोग करते हैं । उन अभियोग्य-श्रेणियों में देवराज, देवेन्द्र शक्र के सोम, यम, वरुण तथा वैश्रमण देवों के बहुत से भवन हैं । वे भवन बाहर से गोल तथा भीतर से चौरस हैं । वहाँ देवराज, देवेन्द्र शक्र के अत्यन्त ऋद्धिसम्पन्न, द्युतिमान्, तथा सौख्यसम्पन्न सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण संज्ञक आभियोगिक देव निवास करते हैं । उन आभियोग्य-श्रेणियों के अति समतल, रमणीय भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में