Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
स निक्खममाणे सरिए गवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरसि, उत्तराए जाव पएसाए अब्भंतराणंतरं दाहिणं अद्ध मंडलं संठिई उवंसकमित्ता चारं चरति । तदाणं सृरिए अभंतराणंतरं दाहिणं जाव चारं चरति, तयाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति, दोहिं एगट्टि भाग मुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालस मुहुत्ताराई भबति दोहिं एगट्ठी भाग मुहुत्तेहिं अहिया ॥ से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तसि दाहिणाए जाव पदेसाए अब्भंतरं तचं उत्तरं अहंमंडलं संठिई उवसंकमित्ता चारं चरति,
ता जयाणं सुरिए अब्भंतराणं तचं उत्तरं जाव चार चरति तदाणं दिवसरातिप्पमाणं श्री गौतम स्वामी करते हैं. प्रश्न-उ नर का अर्ध मंडल किस प्रकार रहा हुवा है ? उत्तर-जब सूर्य सब से आभ्यं र के उत्तरार्ध मंडल की स्थिति को उपसंक्रम कर चाल चलता है तब उत्कृष्ट अठारह । दिन होता है और जघन्य बारह महुर्त की रात्रि होती है. वहां से नीकलता हवा सूर्य नविन संवत्सर में गमन करता प्रथम अहोरात्रि में उत्तरार्ध मंडल के अंतिम प्रदश स अभ्यंतर दूसरे दक्षिण की अर्धमंडल की संस्थिति को अंगीकार कर चाल चलता है. जब सूर्य आभ्यंतर दूरी दक्षिण की अर्ध मंडल के संस्थिति को उपसंक्रमकर चाल चलता है तब अठारह मुहूर्त में एकसठिये दो भाग कम का दिन होता है और एक सठिये दो भाग अधिक बारह मुहूर्न की रात्रि होती है. वहां से नीकलता हुवा सूय भरि
प्रकाशक-राजाबहादूर लालामुखदेवमहायजी ज्वालामसाहजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org