Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुबादव-ब लब्रह्मचारी मुनि श्री अमौसख ऋषिनी १
वढे वलयाकार जाव चिट्ठति, तं. पुखरवरेणं दिवे किं समचक्कवाल विक्खंभो परिक्खेवो जोतिमं जाव तारातो ॥ ६ ॥ ता पुक्खरवरदीवरतणं दीवस्स चकवाल विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे एत्थणं माण सुत्तरेणाम पवते ब? वलयाक र संठाण संठित पत्ते जेणं पुक्खरवर हवं दुहावि भयमाण २ चिटुंति तंजहा
अभंतर पक्खरडंच वाहिं पुक्खरखंच ॥ ७ ॥ ता अभितर पुक्खरहेणं कालोदधि समुद्र का चारों तरफ पुष्कर वर नामक द्वंप वर्तुलाकार रहा हुवा हैं. यह पुष्करनर नामक तैप क्या मम क्रमाल है या विषम चाल है ? अहो गौतम! इम का विभ, परिधि यावत् तारा पर्यत बनीवाभिगम सजानना. अर्थात् यह पुष्क बग्दै प लह लाख योजन का चक्रवाल से चैरइ वाला है. इस की परिधि १२२८१८१३ मे कछ अधिक की है. इस में १४४ चंद्र, १४ १२६७२ ग्रह, ४.३२ नक्षत्र, १६४४४०० काडाड तागा हैं. जिस में से ७२ चद्र, ७२ १६३३६ ग्रह, २०१६ नक्षत्र, ४८२२२०० कोडकेड तारा इतने स्थिर है. और इतने ही चलते हैं । इम पुष्करबर नामक द्वैप की १६ लाब योजन की चक्रवाल चौडाइ के बहुन मध्य भाग में मानुष त्तर नापक पर्वत है. यह मानुत्तर नामक पर्वत यतलाकर चुडी के आकार वाला है. यह पृष्करवपद्वीप आम्यं र पुकारवाहीप व बाल पुष्करवर द्वीप ऐसे दो भाग करके रहा हुवा है. ॥ ७ ॥ यह
पकाशक राजावहादुर लाला मुखदवसायजी ज्वालामसाटा.
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