Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
અર્થ
488+ सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग
राहु देवे महिडिए जाव महालक्खे वरवत्थधरे जाव वराभरणधारी राहुस्सणं देवस्स णवणामधिज्जा पतंजहा- सिंघाडए, जडिलए, खत्तते, खरन्ते, देदुरे, मगरे, मच्छे, कच्छभे, किण्हस ॥ ६ ॥ राहुस्सणंदेवस्सविमाणा पंचत्रण्णा पण्णत्ता तंजहा किण्हा नीला लोहिया हालिद्दा सुकिला ॥ ७ ॥ अस्थिकालए राहुत्रिमाणं खंजण पण्णत्ते, अस्थि पीए र है बिनाणे लाउवण्णा पण्णत्ते, अस्थि लोहिए मजिट्ठाण्णाभ पण्णत्ते, अस्थि पीएहालवण्णाभे पण्णत्ते, अस्थि सुकिल्लए मासिवण्णाभे पण्णत्ते ॥ ८ ॥ ता जयाणं राहु आगच्छमाणेषा गच्छमाणेया विउन्त्रमाणेवा परियारेमाणेवा
राहु देव महर्द्धिक यावत् महा मुखवाला है. श्रेष्ठ वस्त्र धारत करनेवाला, श्रेष्ठ आभूषण धारन करनेवाला है. { इस राहु देव के नव नाम कहे हैं तथथा -- १ सिंघाटक २ जटिल ३ क्षुल्लक ४ स्वर ५ ददुर ६ मगर ७ मच्छ १८ कच्छ और ९ कृष्ण सर्प || ६ || इस राहु का विमान पांच वर्णवाला कहा है तद्यथा-१ कृष्ण २ नील ३ रक्त ४ पीत और ५ शुक्ल ॥ ७ ॥ राहु का कृष्ण वर्ण का विमान खंजन के वर्ण समान है, २ नीलवर्ण वाला राहुका विमान तुम्बे के वर्ण जैसा है ३ रक्त राहुका विमान मंजीठ के रंग समान ४ पीला राहुका विमान हल्दी के वर्ण समान है. और ५ शुक्ल वर्ण वाला राहुका विधान भ समान है. ॥ ८ ॥ जब राहुदेवता जात-- हु, आता हुवा, विकुरण करता हुवा, व परिचारणा करता
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* बीमचा पाहुडा
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