Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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प्ति-मूत्र पष्ठ-उपाङ्ग
पण्णत्ता?गोयमा दुविहे राहु पण्णत्ता तंजहा-धूवराहुय पव्वराहुय ॥११॥ तत्थणं जैसे धुवराह सेणं बहुलपक्खस्स पडिवए पण्णसति भागेण पण्णरस भाग चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे चिट्ठति तंजहा-पढमाए पढमं भागं वितियाए वितियभागं जाव पण्णरसेसू पण्णरसमभागं, चरमसमए चंदेरत्ते अवति अवसेस समए चंदेरत्ते विरत्तेवा भवति।।ता
मेव नुक्कपक्खन उबदंससाणे २चिट्ठति तंजहा पढमाए पढमभाग जाव पण्णरसं भागं चरम . समए चंदे बिरत्ते भवति अब समए चंदे रत्तेविरत्ते भवति।। १२॥ तत्थणं जैसे पवराह हैं ? अहो गौतम ! राहु के दो भेद कहे हैं जिन के नाम-१ धृवराह और राहु ॥ ११ ॥ इन
में पे जो धृवराह है वह कृष्ण पक्ष का प्रतिपदा के दिन पनवे भाग से कार पारवे दिन पिचर भाग को चंद्र लेप का आवरण कर रहा है. तयथा. प्रतिपदा को पवन भाग, द्वितिया को दोहर भाग यावत् चतुर्दशी के दिन चवदह भाग १५ सयास्वादन जाह भाग. चरम समय में चंद्र रक्त होकर आवरण करने वाला डा. अनि अमावासपा के चरम सम्पमें चंद्र को सर्वथा प्रकार
से आवरण करता है. अमावास्या का चरा समय वर्मवर शेपममय में चंद्र रक्तबमिरोवे. वैसे ही 7. शुक्ल पक्ष मे चंद्र को बताता हुमा राहु रहता प्रतिपदो को एक भाग यावत् पचरहवी तीथी।
का पन्नरह भाग पूर्णिमा के चरम समय में चंद्र विरक्त होये व शेष समय में चंद्र रक्त व विरक्त होता है ॥ १२ ॥ जो पर्व राहु है वह जघन्य छ मास उत्कृष्ट ४२ मास में चंद्र का ग्रहण करे ।
→ बसमा पाहुडा 2
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