Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 419
________________ से जहण्णेनं छण्ड मासाणं उक्कोसेणं बयालीसाते मासाणं चंदरस अडतालीसति संवच्छराणं सरस्त ॥ १३ ॥ से केणट्रेणं एवं बच्चइ चदे ससी ? गोयमा! चंदरसणं जोतिसिंदस्स जोतिस्सरन्नो मियके विमाणं कंता देवा कंतातो देवीओ कंताति आसणसयणखंभ भंडमत्तोवरणाई अप्पणावियणं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया सोने कंते मुभगे पियदमणे सुरूवे ता सेतेणटेणं एवं वुच्चइ चदेससी ॥१४॥ सेकेणटेणं एवं वुच्चति सूरे आइच्चे ? गोयमा! ता सूरादियाण समयातिवा आवलियातिता जाव उसीप्पणितिवा अवसप्पिणितिवासेतेण?ण एवं वुच्चति सूरे आइच्चे ॥ १५ ॥ता चंदस्सणं और जघन्य छ मास उत्कृष्ट ४८ वर्ष में सर्य का ग्रहण करे ॥१३॥ अहो भगवन् ! चंद्र को शशी क्यों कहा ? अहो गौतम ! ज्योतिपि के इन्द्र ज्योतिषि के राजा चंद्र को मृा के चिन्ह वाला मृगांक नामक विमान है, मनोहर देव व दरियों , पनाहर आसन शयन भंड व उपकरण हैं, ज्योतिपि का इन्द्र ज्योतिषी का गना चंद्र सायमन शीतलकारी, सौभाग्यकारी प्रेमका सरूप है. इसलिये चंद्र का शशी कहा है. ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! सूर्य को श्रादित्य क्यों कहा? अहो गौतम ! सूर्य आदि करने वाला, समय. आयलिका, भासा उश्वास, स्तोक, लव, मुहूर्न, अहराधि, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, 17युग यावत् अवसर्पिणी उत्सर्पिणी का करने वाला है. इस से अहो गौवम ! सूर्य को आदित्य कहा है. 4 अनुवादक-गालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादर्ज . " For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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