Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 424
________________ Saamammianima - - अमावदक-पालब्रह्मचारी मानि श्री वालक रिजो बिगयो,वितले, विजये, विनाले, साले, सुव्यए, अणियष्ट, अाशि एमडी; दंडि, करकारिए, गले, पाकेतु, भावकेतु ॥ इति एक पाउछ.. (काल) , हिपण लहानपणा ॥ उकातिया भगवती, तेस्त राशि ॥ १ ॥ शहिला दिवि गारचित्रमाणि पडिगाए ॥ अबहुराए न देथा ॥ सपोरिन । भवेत्रा॥ २ ॥ सा दिइ उठाणुछ कम्बल वीस हि ॥ जोलिदिख उबतो, अभायो पक्खि जाहि ॥ ३ ॥ सोपवयग कुलाण संघचाहिरोना १७४ विगत शोक, ७५ विचल, ७६ विवय, ७७ विशाल, ७.शाट, ७९ गया, ८. नि. १. अ १नात, ८२ एका ८३ दिनमा, ८४ कर, ८५कर की, ८६ रागठ, ८७ पुष और ८८ पहा कतं. या अव्यादी ग्रह भत्या ग्रहाचार २ हजार सामानि देव.चार २ अनघा तीन २ पारपदा देवमा २ अनिक व अधिक के शापति हैं. और सोलह आ रक्षक देव व अन्य भी सनिधनी देव व दवियों. सा का अधिपतिपना करते हुरे चिरते हैं. पूर्पोक्त श्री शशिका अर्थ प्रगट हैं. पतु अभव्य जीवों को इस का अर्थ दुर्लभ होता है ॥१८॥ यह चंद्र शनि सूरर्थाला है. इस रा इस का ज्ञान दान किम को देना किश को न देना सो दलाते हैं. यह उमा भारती श्री ज्योतिराज प्रज्ञाप्त का ज्ञान दान समयमंत्र. ग्राण करनेवाले को। ऋद्धयादि गर्व आजाने से नरकादिगति प्राप्त हो इन स उन को देना नहीं पातुं नरकादि गति मिटान ..प्रकाशक-राजाबहादुर लाचा मुखदेवपहायजी ज्वालाप्रसादनी. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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