Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 412
________________ सूत्र अर्थ सङ्घदश चंद्र प्रति सूत्र षष्ठ- ऊपाङ्ग 49+ ता अस्थि से राहुदेवे जेणं चंदसूरंच गिव्हंसि तेणं एवं माहंस ताराहु देव चंदसरंच गिण्हमाणे बुद्धत्तेणं गिण्हंति बुद्धं तेगं गिव्हंत्ता बुद्धले मुयति, बुद्ध तेणं मुबतित्ता मुद्धतेगिण्हत मुद्धतेनं गिण्हतित्ता मुद्धणं मुयति, वामं भुयत्तणं गिन्हति २त्ता वामं भुयं तेणं मुयति, वामभुयंचेगं गिण्हइत्ता. दाहिंग यंतणं मुपति, दाहिण भुयं तेणं गिरहंतित्ता वामभयंतेणं मृयति, दाहिण भूषाव्हइत्तः दाहि भुषणं मुयति गए मासु एव ॥ ४॥ तत्थ ज त एवं माहंनु ता पत्थिण से राहुदेव जेणं चंदसरंच गिव्हइ, जो ग्रहण करता है वह राहु है. उनका कथन है कि देव चंद्र सूर्य को ग्रहण करता हुवा अधोभाग से ग्रहण करत है और भो भाग छोड़कर चलता है. अधोभाग से ग्रहण करलेता है। और ऊर्ध्व भाग से छोलत है, ऊर्ध भाग से ग्रहण कर उठता है और अधोभाग से छोड़ता है. ऊर्ध भाग से ग्रहण है और ऊर्ध भाग से छेडता है जाम भूजा से ग्रहण कर वाम भूजा छोडती है. राम भूतकर दक्षिण की पूजा मे छंडता है, दक्षिण भूजा से ग्रहण कर राम भूजास छोड़ता है, दाक्षण भूज ग्रहग कर दक्षिण भूना से छोड़ता है. यों किततेक कहते हैं || ४ || अब जो अन्य तीर्थ एमा कहते हैं कि चंद्र सूर्य को जो ग्रहण करता है व राहु देव नहीं है. इन का कथन ऐसा है कि पंचरह Jain Education International For Personal & Private Use Only पत्रा पाहुडा ३९७ www.jainelibrary.org

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