Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

View full book text
Previous | Next

Page 411
________________ । अर्थ मानवादक-पालनमचारी मुनि श्री अमालक पिजी ' अत्यि तेर्सि उठाणेतिवा जाव परिसकार परकमेतिवा तेणं विपि लवंति.. असणिपिलवंति एग ए। माहंम ॥१॥वयं पण एवं वयामो,ता चंदिम परियाणं. देवा है महिड्डिया जाव महामुक्खा वरवत्थधरा वरगंधधरा वरमल्लधरा वराभरणधरा अवोछिन्नणयट्रयाए अण्णचयति अण्णे उबरजति आहिते ते वदेजा।।२॥ ता कहं ते. राहु कम्मे आहितेति वदेजा तत्थ खल इमातो दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ तंजहा तत्थेगे एव माहंपु ता रिण से राहु देवे जण चंदिम सूरंच मिण्हति . एगे एवं माहसु ता गस्थिणं ते राहु देवे जणं चंदं मरंच गिव्हंति ॥३॥तत्यणं जेते एव माहंसु करनेवाली परंतु उन को उत्थान कर्म वल वीर्य व पुरुषात्कार पराक्रम है. वे विद्युत्ममान प्रवर्तते हैं. वन समान करते हैं, मेघ ममान गरिव करते हैं ॥१॥ इस कथन को हम इस प्रकार कहते हैं कि चंद्रमा व सूर्य दोनों देव है. वे महद्धिक यावत् महा मुखवाले हैं. श्रेष्ट वस्त्र धारन करनेवाले हैं, श्रेष्ट गंध धाग्न करवाले हैं, श्रष्ठ माला धाग्न करनेवाले हैं, श्रेष्ठ आभरण धारन करनेवाले हैं, वे अनिच्छिम्रपना से आयष्य का क्षय होने से चरते हैं और अन्य उत्पन्न हाद ॥२॥ अहो भगवन् ! र.हु की क्रिया कैसे कही? अहां गौतम : इस विषय में अन्यतीर्थ की प्ररूपणा रूप दो पडित्तियों कही. कितनेक ऐमा कहते हैं कि राहु देव है कि जो चंद्र सूर्य ग्रह कर ग्रहण करता है २ और कितनेक ऐमा कहते है कि जो चंद मर्य को ब्राण करता वह राहु नहीं ॥३॥ जो अन्य तीथि ऐसा कहते हैं कि चंद्र सूर्य कोई राजामहादुर छाला सुबदा सहायनी मालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428