Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
ma
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोकविजी210
अर्थ
मक्खने मेरे जो जोतेति जोस देसमिसेमाई अटास्मतीमा शातिदिय सयाति उवाणिचित्ता पुणरवि से सूरे अण्णणं तासिएक चे नसणं जोगं जातति तंति देसांस, ता जणं अजणखत्तेणं मरे जे सोशलि मि मि तणं इभाति छत्तीस सट्टाइति रातिदियालयाई उवाणिरिता पुरविले सूरे तेणं घेव णवत्तेन डोगं जोतेति ती २देससि॥ २२ ॥तया च इमे चं गति
समायण भवति तताणं इतरेचि चंदे गति समारणे साति, जया इतरवि चंदेगति जो नक्षत्र जिस देश में सूर्य को साथ योग करे उस देश से ७३२ अहोरावि अनुक्रम स गये पछ पमूर्य उन ही नक्षत्र की साथ अन्य तादशपने योग करता है. अर्थ अट्ठाइस नक्षत्र का दो चक्र हावे. जिम नक्षत्र की साथ जिम देश में सूर्य याग करता है उम ही नक्षत्र कीमथ पुनः सूर्य १८३० रात्रि दिन गये पीछे यंग करता है. जिस नक्षत्र की साथ जिस देश में सूर्य योग करता है उस देश से ३६६. रात्रि दिन गये पिछे उमड़ी नक्षत्र को साथ सूर्य योग करनाई
है. ॥ २२ ।। जम्बूद्वीप में दो चंद्र व दो मूर्य हैं. प्रत्येक को भिन्न २ ग्रहादिक का परिवार है इम से इस " का विवरण के लिये कहते हैं. नब भरत क्षेत्र में चंद्र प्रकाश करता हुवा गति समापन होवे तब अन्य
इवत क्षेत्र में भी चंद्रमा प्रकाश करता हुवा गति समापन हावे. जब इरवनक्षेत्र मे चंद्रमा प्रकाश करता।
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी वालाप्रसादजी .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org