Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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एकारसमेपये पगरसमेपरे, गणवीसमेपये. तेवीसमेपव्वे ॥ तत्थ खलु इमे छ अतिरत्ता
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विचार कहा. ऋत अगाड मानने और पा श्रावण मास के कृष्ण पक्ष मत. अमुक पर्व में कितनी ऋतु पूर्ण हुई.कोनसी बसवत रह है. और इस शिलो दिन हो इस जानने की विध. इसमें धूध आंक स्थाप। ३२. पला अांक ११५. दू।। १८९१, नीमरा ३७८२ और चौथा ६२% यों चर धूप आंक की सार1. एक पकनाथी १५. यानधो ६१ मा ६२ ये की है। इस से १५४६१-११५ मश १५ हु, यह प्रथम धा राशि हुई. दूसरा आंक ऋतु का एक युग की १८३० रन है, आर ई ३० ऋतु मोता है. इस से १८३० को. ३० का भाग देने ६१ अहो रा की एक न हुइ. इसके ६२३ भाग करने को ६२ से गुना करना ६५४३२०२७८२ भाग ६२ य हुव'. इसमें अर्थ ऋतु र यु। में भोगता है इन के अर्ध १८९१
भग ६२ या . यह मा . हुई. तसी ३७८२ की पूरी ऋत की और चौथी ६२ ये भाग भक ६२ मशहुई. अनुप कौननी ऋ गई यह जानको पर्वका प्रथम धृध से गुता करना, .उस में दूर थापाक मीलन , इस सख्या को तीर धृ। आंक में भाग देना. जो भाग आरे उतनी
ऋतु व्यान हुई जानना. और शप रहे उचे था धून आंकसे भाग देना. जो भाग आवे वे दिन ॐऔर शेष रहा सो ६२ ये भाग जानना. दृष्टांत-प्रथम संवत्सर के फल्गुन शुदी .१५ को कौनसी ऋतु
420 बारहवा पाहूडा
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