Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
सूत्र - 4484
:-2448
चउकीसति
॥ छ चेव अतिरत्ता आइचाउ भवंति जानाहि ॥ छ चेव
चरम
दो को दो का भाग देने से एक तीची आई इस तरह समय में प्रथम ऋतु पूर्ण हुई एवं ही तीवरी से गुन्ने ६ हुवे इस में एक बाद करने से परहे इस को दो से गत इस दश पर्व को दो भाग देत पांच रइस र ग्वार
स े पर्व की प्रथम तीथी ऋतुजाने को तीन को दो १० हु की पांचवी साथी के
पर्वत हु चरम समय
तीसरी ऋतु संपूर्ण हो. ऐसे ही आगे जो जिस तीथी पर पूर्ण क्षेत्र सो जानना. यह सूर्य ऋतु का कथन किया. अब चंद्र ऋत का कथन करते हैं. एक युग में द्र ऋतु ४०२ होती है. एक नक्षत्र पर्याय में चंद्रमा की छऋतु हे पर्याय युग में ६७ है, और ऋतु ४०२ है, इस से ४०२ को ६७ का भाग देने से वे एक ऋतू कितनी अहारात्रि की होती है ? उत्तरएक नक्षत्र पर्याय चंद्र साथ २७ अहोरात्र ११ भाग ६२ या और २९ माग ६० या की है. इस को
क्योंकि
छका भाग देने से चार अहोरात्र ३४ भाग ६२ या १६ भाग ६७ या एक ऋतु भोगवे अर्थात् इतने दिन में एक चंद्र ऋ पूर्ण हवे. इस में प्रथम अर्ध ऋतु गत युग में प्रवर्ते और दूसरी अर्ध ऋतु युग के प्रारंभ में प्रत्रने अमुक पर्व में कितनी ऋतु अतीक्रमी, कौनसी ऋतु हैं, जानने को घृत्र
और उन के कितने दिन हुए की स्थापना करनी- प्रथम वृत्रक ६१३०५ दूसरा ९४५५ और तीसरा १८९१०
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48** बारहवा पाहुडा +4+
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