Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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आउट्टीओ पण्णत्ताओ ॥ १४ ॥ ता एएसिणं पंचण्हं संवच्छराणे पढमवासिकियं उचंद कण खत्तणं जोगं ज.तेति? ना अभिया अभिस्सणं पढमसमएसमयं
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42 अनुवादक बालबचरी मुनि श्री अमा. ना. -
१.४ तिथे अशेप १६१ भ ग . इस ६२ ये भाग करने का १६१ का ६२: गुना करना निम से ९१८२ ४थे, इस २१ का भ.गदे स ४५ भाग ६२२, शेए ३७ भाग हे इ...२.४ य भाग मानना, इस तरह प्रथा अय युग की आदि मे २४ तिथ व्यतीत हुए पछ पनवी तिथि के ४५ भाग ६२२ ३७ भाग २२१ के. चम्म मपय पूर्ण होय, इस तरह कर अयन का जानना ॥१४॥ अब गैतम मी प्रश्न करत ओभान् ! इन पांच संवतार में प्रथम वपी काल संबंधी आउटे
. और पंद्र किम क्षत्र साथ योग कर ? अहो गौतम ! अभिव नक्षत्र के तीन तारे हे इन से हारन अभना नक्षत्र श्राण वदी १ प्रथा समय में वर्षा काल की प्रथम पाउस. दउ. एम. गुग मायक्षम ६७ प रा और मई १० उरी करते हैं. एक
क्षत्र पर्य4 के महू के ६२ भाग. ६७ ये भ ग ३४:३८०० की प्रगशि दुई, एक थाउटी के मर्न ६२२ यग ६७२ भ ग २०८:५४६. की दूसरी धाराशि हुई, इन में से प्रथम अ.उटी का प्रथम 5म कालना हवे तो प्रथम : म एक बंद करना, जिम से शेष कुच्छ रहे नहीं इस से गत युग की दश आटी हेन, इत को दूसरी धृवराशि से गुरते २२८०५४६००, इस को
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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