Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ सप्तदश प्राभृतम् ॥
ता कहते चणोवत्राते आहितेति वदजा ? तत्थ खलु इमातो पण्णवीसं पडिवत्तीओं पण्णत्ताओ, तंजहा तत्थेगे एव माहंसु ता अणुसमय मेवचंदिम सूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति आहितति वदेज ? एगे पुण एवं मासु अणमुहुत्तमेव चंदिम सूरिया अण्णे चयंति अण्ण उववज्जति वदेजा, एवं जाव जच्चे वह ताए पष्णवी पांडेवतीओ, ततो एत्यपि भाणिव्यात जात्र अणुउसप्पाणिमेव चंदिम सूरिया अण्णे चयंति अण्णे उवजंति आहितेति वदेजा एंगे एवं माहंस ॥ भावयंपुण एक वयामाता चदिम सूरियाण जोइसिया देवा महिड्डिया महाजसा महावला महाणुभावा महासुक्खा ववत्थधरा वस्मल्लधरा अत्तरवाडा कहते हैं. अहो भगवन् ! चंद्र सूर्य का चवण व उत्पन्न होने का कैसे कहा ? | अहो गोतम ! इस विषय मे अन्य तीर्थीकी प्ररूपना रूप पश्चीम पडिवृत्ति में कही हैं कितनेक ऐसा कहने है कि अनुनय में चंद्र अन्य उत्पन्न होते है और अन्य चवते हैं. कितनेक ऐसा कहते हैं प्रत्येक मुहूर्त मे चंद्र सूर्य अन्य उत्पन्न होते हैं व अन्य चलते हैं. यो जिस प्रकार स्थाने अ श्री पच्चीस परिवृत्ति कहीं वैसे ही यहां कहना. यावत् प्रत्येक उत्सर्पिणी में चंद्र सूर्य अन्य उत्पन्न होते हैं
अन्य चवत हैं।
| १ | इस कथन को हम इस प्रकार कहते हैं कि चंद्र सूर्य दोनों ज्योतिषी के दत्र महर्दिक, महाझुति
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ॐ प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी ०
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