Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 403
________________ अर्थ ॥ एकोनविंशतितम प्राभृतम् ॥ सा कतिणं चंदिम सारया सव्यलायसि उभासंति उजाविति तर्विति पभासंति आहिसेति वदेजा ? तत्थ खल इमातो दुबालस पडिवीओ पण्णताओ तत्येंगे एव माहंसु ता एगेचंदे एगेमूरे सव्वलोगनि भाति जाव पभासंति आहितेसि वदेजाएंगे एवं माहस। एगे पुण एवं माहंसु ता तिष्णिवंदा तिष्णियंत्र सूरे सव्यलोगंसि भासति जाब प्रभासंति आहितेति वदेजा एगे एवं माहं ॥ गे एवं महंता अट्ठ चंदा अट्ठ सूरा सलगम आभासति जाव पभासति अहो भगवन् ! मंत्र लोक में कितन चंद्र सूर्य ज्योत करते हैं, अहो गौतम ! इस विषय में अन्य तीर्थ की प्ररूपणा रूप बाह परिवृत्तियों की हैं ? किननेक ऐसा कहते हैं कि एक केंद्र व एक सूर्य सब लोक में उद्योग करते हैं। यावत् प्रकाश करते हैं. किसने ऐसा कहते हैं कि तीन चंद्र तीन ये उद्योत करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं, ३ कितनेक ऐना कहते हैं कि आठ केंद्र सूर्य उद्यात करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं। ई यो जिस प्रकार तीसरे पाडे में बारह प्रवृत्तियों कही है। सब कहन जैसे सात चंद्र- सान सूर्य, भव भीमा पाहड़ा कहते हैं. सपने हैं यावत् प्रकाश करते हैं ? चालवा मुनि श्री अलक ऋषि Jain Education International For Personal & Private Use Only O THE EYE 71 ३८८ www.jainelibrary.org

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