Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 402
________________ 4 ro -चंद्र प्रजाती सूत्रपाठ-ग्याङ्ग 48 अवाहाए उवरिल्लेतारारुवे चारं चरति ॥ २ ॥ ता हेटिल्लाताणं तारस्वाती पस जोयण अबहार सरे विमाणे जारं चरति, तयाणं असीत जोयण अवाहाए चंदेवि. माणे चार वरति, तयाण बीसं जायण अवाहाए तरारूवे चारं चरति एवं जहेय जीवाभिगमे तहेव यवं सम्भंतरं जं चारं संठाणं पमाण वहति, सीहगति इ8 तारतर अग्गमाहितीतो ठिति अप्पाबहुयं जाव तारातो संखेजगुण! ॥ इति अट्ठारसमं पाहुउं सम्म ॥ १८ ॥ का विमान है, और २०० योजन चे उपर का तारा पंडल है. ॥ २ ॥ नीचे का तारा मंडल से दश योजन ऊचे सूर्य का विमान है. उस से ८० योजन उपर चंद्र का विमान है, वहां से बीत योजन ऊंचे १ उपर का तारा मंउल है. य जैसे जीवभिगम सूत्र में कहा वैसे ही कहना. ११० योजन में ज्योतिष चक्र है. यावत् सब आभ्यंतर कौनमा नक्षत्र है ? वगैरह सब वक्तव्यता कहना. चंद्रादिक के विमान के के मंस्थान की वक्तव्यता कहना, चंद्रादिमान की लम्बाइ, चौडाइका अंगण, विमान को पहन करने वाले, शीघ्रगान, ऋद्धि. अंतर, अग्रमोहषियों, स्थिति, अल्पाबहुत्व वगैरह सब यहां कहना. यावन् ताराओं मरूपातगुने हैं. यह नद्र प्रज्ञप्ति सूत्र का अठारहवा पाहुडा संपूर्ण हवा. ॥ १८ ॥ -28- अमरहवा पहुडा 49844 - १ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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