Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 401
________________ 案 42 अनुवादक बालब्रवारी मुनि श्री अमोल कोजी वावीसंसूरे अद्धतेवीसमाति चंदे, तेवीससूरे अरू चडवीसतिमार्ति घंबे, चवीसं सूरे, अद्धपण्णत्रीसतिमातिं चंदे एगे एवं माहंसु ॥ एगे पुण पणवीसंच जोषण सहस्लाति सूरे उड्डुं उच्चत्तेनं अद्धछत्रीसतिमातिंचंदे एगे एवं माहंसु ॥ १ ॥ वयं पुण एवं वयामोता इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए बहुसमरमाणिजातो भूमिभागाओ सच उते जोयणसते अवाहाए हिट्ठिल्लेतारारू चरं चरति अट्ठजोयणसए अबहाए सुर. बिमाणे चारं चरति, अट्ठसी जोधणसए अवाहाए चंदविमाणे चारं चरति, णव जोयणसए योजन चंद्र ऊंचा, २० बीस हजार योचन सूर्य ऊंचा साढ़े बीस हजार योजन चंद्र ऊंचा, २१ इक्कीस { हजार योजन सूर्य ऊंचा सांदे इक्कीस हजार योजन चंद्र ऊंचा २२ बाइस हजार योजन सूर्य ऊंचा साढे { बाइस हजार योजन चंद्र ऊंचा २३ तेइन हजार योजन सूर्य ऊंचा साढ़े तेइस हजार योजन चंद्र ऊंचा २४ तीस हजार योजन सूर्य ऊंचा साढे चौबीस हजार योजन चंद्र ऊंचा २५ हजार योजल सूर्य ऊंचा सपचीस हजार योजन चंद्र ऊंचा ॥ १ ॥ इस तरह अम्यतीर्थी की प्ररूपणा कहकर भविस अपना मत कहते हैं. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत समरमणीय भूमिभाग से स मे नीचे का तारा मंडल है, भाइको योजन ऊंचे सूर्यका विमान है, और Jain Education International For Personal & Private Use Only ७२० योजन ऊंचे : अबाबा म उसी महती योजन ऊंचे चंद्र ● राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायत्री ज्वालाप्रसादजी * www.jainelibrary.org

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