Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चरति ता णवपण्णरस मंडलं सते चरति, ता जुगेणं गक्खत्ते कति मंडलातिं चरति ता अट्ठारस पणतीसं दुभाग मंडलं सते चरति ॥ १७ ॥ इच्चेसा मुहुत्तंगति भागेणमास रातिदय मंडलं जुगपविभत्ति सिग्धगति आहितात वदेजा ॥ इति
परम पहुई सम्मत्तं ॥ १५ ॥ () () () () ज ग में सूर्य चलता है. इस के मंडल करने को १०१८.० से भ ग देना जिस 103. आर. इस से एक या में मूर्य ११५ मंडल चलता है. अहे मगवन् ! एक युग निना मंडल चलना है ? अहो गौतम : एक युग में नक्षत्र १८३५ अर्ध मंडल चलता है. इस के
ड होते है. एक युग में मुहर्न ५४१०० है. और नक्षत्र एक महू में १८३५ म १८०० के चलता है इस से ५४९०० मुहूर्त साथ १८३० मे गुना करने से १२०७४१००० भाग
ल है. इस मंडल करने के १०९८०० से भाग देने से ९१७। मंडल होते है. इस म एक बुग में TRA ९१७॥ मंडल चलन है. ॥ १७ ॥ इस तरह चंद्र पूर्य नक्षत्र की मुहू में कितना भाग चल
दुग के नाव ओरात्रि में कितना चले, युगमें उक्त तीनों कितने मंडल चले वगैरह से तीनों की शीघ्र निति कही. यों चंद्र प्रज्ञान सत्र का पनरहवा पाहुडा संपूर्ण हु॥ १५ ॥
पकायाक-रामावादरहाला सुखद धमहायजी वालाप्रसादाजी.
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