Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ पञ्चदश प्राभृतम् ॥ ता कहते सिग्ध वत्थु आहितेति वदेजा ? ता एएमिणं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्त तारारुवाणं चंदहिंतो सूरा सिग्धगति सूरेहिंतो गहासिग्घगति, गाहिंतो नक्खता सिग्धगति, णक्खतेहिंतो तारासिग्धगती ॥ सव्व अप्पगतीणं चंदो, सव्त्र सिग्घगतीण तारा ॥ १ ॥ ता एगमेगेणं मुहुत्तेगं चंदे केवइयाई भाग सयाइ गच्छति ? ता जं
चत्रे पाहुडे में अंधकार व उद्योत का कथन किया. अब पनहत्रे पाहुडे में चंद्र आदि नक्षत्र की (शीघ्रता व मंदता कहते हैं. अहो भगवन् ! जो पांच प्रकार के ज्योतिषी हैं, उन में से शीघ्रगति किम की है ? अहो गौतम ! चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र व तारे इन पांच प्रकार के ज्योतिषियों में चंद्र से सूर्य की शनि है, सूर्य से ग्रह की शीघ्रग ते है, ग्रह से नक्षत्र की शघ्रगति है, और नक्षत्र मे ताराओं की शीघ्रगति है. सब से मंद गति चंद्र की सत्र मे घ्रिगति ताराओं की है ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! एक २ मुहूर्त में चंद्र कितना भाग चलता है ? अहो गौतम ! चंद्र जिम २ मंडल पर चलता है उस २ मंडल का १०२८०० भाग करना जिस में के १७६८ भाग एक मुहूर्त में चलता है. एक युग में चंद्र करना मंडल करे ? युग की १८३० अहोरात्र हैं इस के मुहूर्त करने को ३० से गुना करने से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
५ . शक राजा बहादुर बाला सुखदेवसहायजी ज्याला प्रमादजी ०
३५६
www.jainelibrary.org