Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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488*- सप्तदश चंद्र मशशि-सूत्र पष्ट पा
जोतेति ? ता जंबूदीवस २ पाई पडणाययाए उर्दिण दाहिण जीवाए मंडलं चउब्विंसणं सतेनं छेत्ता दाहिणं पुरथिमिल्लांसि चउभाग मंडलसि, सत्तावीसं भागे उतना अभागे विमतिहा छेत्ता, अट्ठारस भागे उणादिना तिहिं नागहिं दाहिया कलाहिं दाहिण पञ्चस्थिमे चउभाग मंडल असंपत्ते से चंद छत्तातिछत्तं जोगं जोतेति, उप्पं चंद मज्झेणक्खत्ते हेट्ठा आइचे तं समयं चणं वदे केण णक्ख ते ? ताहिं चित्ताहिं चिताणं चरमे समए इति बारसमं पाहुडं सम्मतं ॥ १२ ॥
तत्थ
गौतम ! इम जम्बूद्वीप में पूर्व पश्चिम की लम्बाई से व उत्तर दक्षिण की जिव्हा से एक मंडल) के १२४ के भाग चर करना. इस मे ३१ भाग उत्तर पूर्व के ईशान कून में ३१ पूर्व दक्षिण अनिकून में ३१ भाग दक्षिण पश्चिमकून में और चौथा ३१ भाग पश्चिम उत्तर वायब्दकूनम इन चार भाममें से दक्षिण पूर्व को चौथा ३१ भाग में २७ भाग लेकर अहान भाग के बीस भाग करना. जिस मे से १८ भाग लकर १९ भाग इसके दो भाग लेकर दक्षिण पश्चिम के नौथे भागको नहीं पहुंचना हुवा चंद्र इन समय उपर चंद्र मध्य में नक्षत्र और नीचे सूर्य रहे. अहो भगवन् ! इम समय चंद्र, किस नक्षत्र साथ योग करता है ? अहो गौतम ! उस समय चंद्र चित्रा नक्षत्र के चरम समय में दोवे. यह चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र का बारहवा पाहुडा संपूर्ण हुवा
छत्र पर छत्र का योग कर
॥ १२ ॥
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4+वावा पाहुडा
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