Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 364
________________ Fo अर्थ 44+41+ समा बाहिर चउदस्त पच्चत्थिमिलस्स अडमंडलस्स च उतीसं तत्तसी भागाति सत्तसट्ठी भागव एकतीसहछता अट्ठारस भागाति जाति चंदे अप्पणो परस्सचिण्णं पडि तीसरी अयन में गया हुवा, पश्चिम भाग में प्रवेश करता हुवा, बाहिर के पनरडवे मंडल से चउदहवे मंडल पश्चिम के अर्धमंडल के १४ भाग ३७ ये और १७ चुरणिये भाग ३१ ये चंद्र अपने मंडल पर देव परके मंडल पर चलता है. अर्थात् १६ ॥ भाग ६७ ये ईशान कौन के अपना क्षेत्र चलकर १७| (भाग ६७ या और १८ बूर भाग ३५ ये अ. मे कून के सूर्य का पर क्षेत्र चलता है. इस तरह बाहिर से चडदवा नैऋत्य कून के अर्ध मंडलपर एक चंद्रमस संपूर्ण हुवा, क्योंकि चंद्र मास ६२ है और चंद्र के अर्ध मंडल १७३८ है. १७६८ को ६२ का भाग देने से २८ अर्ध मंडल आये और ३२ भाग ६२ या रहा. इस के ६७ ये भाग करने को ३२ को ६७ से गुणा करना जिस से २१४४ हुत्रे. इस को ३२ का भाग देने से ३४ भाग ६७ या और शेष ३३ रहे इस के ३१ के भाग करने को ३१ से गुनना जिस से १९१६ हांवे, इस को ६२ से भाग देने से १८भाग ३५ ये हुवे. इस तरह एक चंद्र पास १२८ अर्ध मंडल ३४ भाग ६७ ये और १८ चूरणीये भाग ३१ ये चलता है. इस से १४ वे मंडल पर एक अग्रन संपूर्ण होवे और २८ मंडलपर दो चंद्र अपन संपूर्ण होवे. और तीसरी अपन में पन मंडल Jain Education International For Personal & Private Use Only 49* 43+ तेरहवा पाहुडा 48*42+ ३४९. www.jainelibrary.org

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