Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मंडलरस एकतालिस सत्तसट्ठीभागाति जाति चंदे अप्पोय परस्सय विगं पडिचरति,तेरस
भागाति,जातिचंदे पररसचिण्णं पडिचरति तेरस्स सत्तसट्रीभागाति जातिं चंदे अ- १ प्पणीय परस्सचिण्णं पडिचरति । एतावता बाहिरेतच्च पुरथिमिल्ले अद्धमंडले एकतालीसं
सत्तमट्रीभागेति समत्ते भवति ॥१३॥ तातचायणगते चंदे पचत्थिमाते भागाए पवि. भाग ६७ य जाते पर क्षत्रपर चलता है. और मे १३ भाग ६७ ये अपना वपर का क्षेत्र पर चलता है
इस तरह वाहिर के अंतर से पूर्व भाग में प्रवेश करता हुवा अर्ध मंडल भाग ६७ ये में संपूर्ण होवे. यह g ठ पर से अर्थ होता हैं. परंतु यहाँ क्षेत्र कहा उस का कारन यह हैं कि एकी मंडल से नीकलकर बकी
मंडलपर ४१ भाग ६७ या चले तब बेकी मंडल का अपने नवये आंक में कहा है. उस स अपने मंडलपर चरता है परंतु यहां अपना व पर का दोनों का कहा इम का कारन यह है कि
संपूर्ण महल ११ भाग का है. इस के ६५ भाग दो सूर्य के और ६७ भाग दो चंद्र के यों प्रत्येक भाग F३३॥ का हुवा. परंतु ४१ भाग ६७ ण चलकर नैऋत्यकून के मंडल पर भावे जिम में ४१ भाग
अग्र कून के क्षेत्र का समर्श सा पर क्षेत्र जना और १॥ भाग 'ऋपकून में चंद्र का क्षेत्र स्पर्श से अपना क्षेत्र जानना. परंतु पाठ में अन्य का ( पर)कहा सो क्यों कहा होगा यह
केवल. गम्य है. और तेरह भाग अपना. व पर का कहा जिसमें भाग अपना क्षेत्र सर्श और 1 । भाग वायव्य कुन में मूर्य का क्षेत्र पर्श यह होना चाहिये. तत्व केवली गम्यः ॥ १३ ॥ अब चने की
4. अनुवादक-चालन नवरी माने श्री अमालक ऋषिम
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदर महायजी आलाप्रसाद जी.
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