Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 368
________________ to 414 सदश चंद्र प्रज्ञपि-पत्र षष्ठ-उपाङ्ग 438 ॥ चर्तुदश प्राभृतम् ॥ ता कहते दोसिशा पक्खाओ बाहु आहितेति वदेजा?ता दाक्षिणा पक्खेणं दोसिणा बहु आहितति वदेजा ? ता कहते दोसिणा पक्खे दोसिणा वह आहितेति वदेजा ता अधकार पक्खाओ दोसिणा पक्ख दोसिणा बहु आहितति वदेना ॥ १ ॥ ता कहते ता अंधकार पक्खाओ दोसिणा पक्खे दोसिण। बहु आहितेति वंदजा ॥ ता अंधकार पक्रवाओण दोलिणा पक्खे अयमाणे चंदे चत्तारिययाल महत्तसएछेताल संच वावटी भागे मुहुत्तरस जाय चंदे विरजति तपढमाए पढमं भाग जाव पारस गुपण्णरसमं भाग।। चउदहया पाहा कहते हैं. अहो भगवन् ! दूसरा शुक्ल पक्ष कैसे कहा है ? अहो गौतम ! शुक्ल पक्ष त बहुन कहा है. अहो भगान् ! दुसरे शुक्ल पक्ष में उद्यात हुन किस प्रकारकहा? अहो गौतम , कृष्ण पक्ष पीछे शुक्ल पक्ष आनेसे अर्थात कृष्ण पक्ष की अपेक्षा में उद्यात विशेष कहा ॥१॥ अहो भगवन् ! अंधकार पक्ष से उद्योत पक्ष के मुहूर्त कैसे कहे ? अर्थात प्रतिदिन उद्योत की वृद्धि कैसे कही? अहो गौतर ! अंधकार पक्ष मे जब उद्योस पक्ष आता है तब चंद्र ४४२% मुहूर्त पर्यंत राहु के विमान से विरक्त होते. इम में पहिले दिन एक भाग यावत् एअरहवे दिन पनरह भाग राहु के विमान से विरक्त होकर वद्धि होने. इस तरह कृष्ण पक्ष से शुक्ल पक्ष के कहे और इसी से प्रति 18+ +30+ चौदहवा पाहुडा 4234 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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