Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
मंत्र
सम-चंद्र मज्ञ से सूत्र पष्ठ उपाङ्ग 48
पण्णरस भागे चरिम समए चंदे रतं भवति, असे ते विरले नवति य अमावासं त्यणं पहले पकखे अनावासात अंकारेक्रस || || ता दाखिला पकखं अयमाणे चदा चार क्याली महत्तम छ्यालीसंच बाबी मांगे महत्तस्म जावति चंदे विरजति जहा-पटनाए पदम मार्ग जान परसमे पञ्णरसमं भागं चरम समए बंद विरत सर्वात अबसेस समय विरतय भवति ॥ अयनं पुण्णमासिणी तत्वणं देणं ॥२॥ तत्थखलु इमाओबादी पुणमाती चंद्र का विमान कर ये भ ग है, इसमें प्रत्येक थी में चार २ मा का आवरण होवे इस तरह पन्नी तिथि में भाग का आवरण हवे और दो भाग अनावृत रहे. चंद्र विमान सूर्य विमानसाथ चलता है हल से अमावास्या को चंद्र का मान मनुष्य कीटावर में नहीं आता है. इस के चरम समय मे चंद्र विरक्त होने पर कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावास्या पर्यंत होता है. इस तरह अमावास्या { पर्यंत अंधकार पक्ष जानना || १ || अब दूसरा शुक्ल पक्ष आने से चंद्र ४४२ विरक्त होने, प्रथम तिथि को प्रथम भाग, दूसरी तिथि का दो भाग यावत नवी तिथि को पन हवा भाग राहु के विमान सेवक होते, चरम समय में चंद्र संपूर्ण विरक्त होने, फीर चंद्र विरक्त से रक्तवो यह शु सेदी १५ तक होते. इस तरह युग में दो पर्व, एक कृष्ण पक्ष की अमावास्या व एक शुक्ल पक्ष की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
44 पहा +4+
३३७
www.jainelibrary.org