Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
अनुवादक बाह्न चारों मुनि श्री अमालक ऋषि +
तीसं रातिंदियाति बत्तसिंच बावट्टी भागा रातिंदियस्स, रातिंदियागेणं आहितेति वदेजा । तीसेणं केवइए मुहुत्तोगेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ठपंचासि मुहुत्तस्स तेत्तीसं च ब बट्टी भागा मुहुत्तस्स, मुहुत्तगोल अहितेति वदेजा । ता एतेलिणं अदुवास क्खुत्तकडा चंदे संच्छरे तीसेणं केवतिए रातिंदिये आहितेति वदेजा ? तातिणि चपणे रातिदिय सते दुबालस च बानी भागे रातिदियस्य रातिदियगोणं अद्दितेति वदेजा ॥ तीसणं केवतिय मुहुत्तगोगं आहितति वंदना ? ता दसमुहुत्ता
संवत्सर का चंद्रमास तीस मुहूर्त के प्रमान में गिनते २० अहोरात्र का होता है. युग के दिन १८३० है और मास ६२ है इस से १८३० को ६२ मे भाग देते प्रत्येक मास के २० दिन होते हैं. अहो भगवन् ! चंद्रवास के कितने मुहूर्त कहे हैं ? गौतम ! एक चंद्रमा के ८८५ मुहूर्त ओर ३० भाग ३२ ये (८८५३) होते हैं. २०३ की ३० से गुना करने मे इतने हते हैं. इस चंद्र मास को बारह गुना करने से एक चंद्र संवत्सर हवे. अहो भगवन् ! एक चंद्र संक्र की कितनी अहोरात्र कही ? अहो गौतम ! ३५४ अहोरात्र एक चंद्र संवत्सर की होती है. उस को १२ से गुना करने से इतने होते हैं.
क्यों का एक चंद्र मास के २४
अहोरात्र होती है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसज्वालाप्रसादजानीयजी
२९६
www.jainelibrary.org