Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
46+ सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ- उपाङ्ग
इंदियग्गेणं पुच्छा ? ता तिणि छात्रट्ठी रातिदियमते रातिदियग्गेणं आहितेति बदेजा तीसेणं केवतिय मुहुत्ते आहितेति वदेजा ? दसमुहुत्तसहस्सातिं णवय असते मुहुत्तस्ते मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेजा ॥ ५ ॥ एतेसिणं पंचण्हं संबंच्छराणं पंचमस्स अभिवड्डिए संच्छरस्त अभिवडिय मातीसति मुहुतेणं अहोरचं गणिजमाणे केव
इस आदित्य मास को बारह गुना करने से, एक आदित्य संवत्सर होवे, अहो भगवन् ! एक आदित्य मंत्र की कितनी अहोरात्र कही ? अहो गौतम ! एक आदित्य संवत्सर की ३६६ अहोरात्र होती है, क्यों कि आदित्य मास की ३०|| अहोरात्र है, ३०x१२-३६६ होते. अहो भगवन् ! एक आदित्य संवत्सर { के कितने महूर्त होते हैं ! अहो गौतम ! एक आदित्य संवत्सर के १०९८० मुहूर्त होते है ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! इन पांच संवत्सर में से अभिवर्धन संत्र का अभिवर्धा के तीस मुहूर्त की अहोरात्र के प्रमाण से किननी अहोरात्र में होवे ? अहो गौतम ! एक अभिवन मास की ३१ अहोरात्र २९ मुहूर्त और १७ भाग ६२ या होवे. युग के दिन १८३० हैं. एक युग के चंद्रनास ६२ हैं, इस से १८३० को ६२ का भाग देने से २२ रे अहोरात्र का एक चंद्र मास होवे तेरह चंद्रमास का एक अभिवर्धन (संवत्सर हेवे और अभिवर्धन संवत्सर के अभिवर्धन मास १२ हैं. इस से २२३ दिन को १३ से
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बारहवा पाहुडा
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