Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
:
अनुवादक-चालनमचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिनी :
- मुहुत्तंगोणं हितेति वदंजा ॥८॥ता केवतिया जो राइदियोणं आहिततिः ६ देजा, ·ता भारती र ईदय सत राईदयरा अहितेरि बदज, तीसणं कंगतिय मुहतग्गेण आ ही बदज्जा ? ता च उप्पन्नं महत्त महराई जय महु नसते मुहतगणं आहितति वदेज । तीमण केवतिन पाचट्ठीभागे महत्तग्गेण आहितेति वदजा ? ता चात्तीसं मतसहस्त अतोमंच बावट्ठीभागे महत्तसते
वाबद्रीभागा मुहत्तणं आहितनि दजा ॥ ९॥ ता. कयाण ते आदिञ्चचंद - .. संवच्छ। समादिता सपज्जवनिया आहतेति बपजा ? ता सट्ठीएए आदिच मैनप ! एक या १५५० मुहू ५ भाग ६२ थे और ५२ भाग ६० ये इतना महूर्त कम हुना ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! एक युग के नेत्र देने कितन कहे हैं? अहो गोनम ! एक युा के १८३० रात्रि
न कहे. अहो भन : एक यगे के कितने म कहे हैं? अहो गौनम ! ५४१० मा युग के कहे हैं. अो भगवन् ! एक मुहूर्भ के ६२ भाग करे वैसे एक युग के किाने वामठीय भाग E ? अहो गीतम! एक युग के ३४ ३८०० वागठाये भाग हो॥ २ ॥ अहो भगवन् ! आदित्य व बद्र संवत्सर एक साथ सपान आदि व अंतवाले कब हो ? अर्थात् कितने भंवत्सर आदित्य व चंद्र ससा समान हो ? भहो गौतम ! ..मास का एक युग होता है, वै: ही ६२ चंद्र पास का भी एक युग
शक राजाबहादरलाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org