Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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लाचारी मुनि श्री अग्पालक ऋषिजी "
६. वेदेजा,॥अहा ते दुच्चेणं चंदसंवच्छरे तिाण चउप्पण्णे राइंदियसते पंचमुहुत्ते पण्णासंच १ वावट्ठीभागे मुहत्तस्स आहितेति वदेजा। १३॥तत्थ खलु इमे छउऊ पण्णत्ता तंजहा पाउसे,
वरिसा, सरदे; हेमंते, वसंते, गिम्हे, ता सविणं एए चंदे दुवे २ मासा अथवा अन्य प्रकारसे ३५.४ अहोरात्र, पांच मुहूर्त, और५० भाग ६२ये मुकिा चंद्र संवत्सर कहा है. इस में बामठीये बारह भाग के पांच महून व शेष ५० होते हैं, यह चंद्र संवत्सर की वक्तव्यता हुई ॥३३॥
अब यहां मूर्य आयतन के लिये ऋतु की बक्तव्यता कहते हैं. सूर्य की दो आयतन में छ ऋतु कही है. - जिन के नाम-१ प्रावृट ऋतु २ वर्षा ऋतु ३ शरद ऋतु ४ हेमंत ऋतु ५ वसंत ऋतु ६ ग्रीष्म ऋतु, जैन . मते में इन छ ऋतु को १ उपपौत २ वासेतो ३ सरतो ४ हेमंती ६ वरमानवसंतो और ६ ग्रीम. युग की
आदि से चंद्रमा के दो २ मास गिनते साधिक २१ अहोरात्रि में एक ऋन होवे. एक युग में तीस सूर्य ऋतु हैं और पांच अदित्य संवत्सर हैं. इस से एक संवत्सर में छ ऋतु दुई. सूर्य मास ३०. अहो:
रात्रि का है. और चंद्र मास २२३३ दिन का. है. एक. ऋतु ६१ दिन पर्यंत सूर्य की साथ बरहती है. इस से वह ऋतु चंद्रमास के कौनसे. पर्व में कौनमी तीथी में पूर्ण होवे, उस में प्रथर अर्ध
ऋतु गत युग भोगधे और अर्ध ऋतु युग के प्रारंभ में भोगवे. जैसे प्रथम प्रावृट् ऋतु युग के प्रथम संवत्सर के तीसरे पर्व में पूर्ग होये. यह भ द्रपद वदी १ के चरम समय में अनु का चरम समय भोगव कर संपूर्ण ।।
काशक-राजाबहादुर छालामुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ..
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