Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बर्थ
समदश-चंद्र पद्धति सूत्र पह-मात
चैव खत्तेणं जोगं जोतेति तसि २ देससि ॥ २१ ॥ ता जेणं २ खत्तणं सर जोगं जोतेति जंसि देस।। सेणं इमाइं तिण्णिछायट्रीरातिदिय सयाति । उवाणिवेत्ता पुणर व से सरिए गणंतारिसतणं चेव नक्खत्तणं जागं जातेति. तसि देसमि ॥ ता जण अज्ज नक्खवत्तणं सूरे जाग जाते. तंसि दसरा सणं इमाति सत्त दवतीमं रातिदिय सयाति उवाणिवत्ता
पुणरवि से भरे तेणं चैव नक्खत्तणं जोगं जीतेति. तंसि देसास ता जेणं प्रथम माम से चंद्र की माथ योग करता हा चक्र में नक्षत्रों की साथ परिभ्रमण करे. इस तरह दो युग पूर्ण करके १३४ नक्षत्र मास पूर्ण कर ॥ २१ ॥ जो नक्षत्र सूर्य की साथ जिस देश में योम करे, वहां से ३६६ अहारात्रि में गये पीछे पुनः सूर्य उनी नक्षत्र की माथ उस देश में योग करता है. सूर्य व नक्षत्र की गाने मूर्य की गति नक्षत्र की गति से मंद है, युग की आदि में सूर्य की साथ पुष्य नक्षत्र १८ दिन २४ महू तक योग कर आगे चला जाब, पीछे अश्लेषा नक्षत्र का प्रारंभ होवे, यह ६ दिन २१ मुहूर्त पर्यन रहे और फीर आगे चला जावे, पोछे मघा नक्षत्र का योग होवे यों जितने दिन का जो. नक्षत्र
वे उने दिन तक सूर्य की माथ योग करके आगे चले जावे यावत् अंत में पूष्य नक्षत्र ४ दिन १८ मुहूर्त तक सूर्य की साथ योग करे तब तीन सा छा सठ रात्रि दिन हो,
दशा पाहुडे का बावीसवा अंतर पाहुडा 49
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