Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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1 अनावदक-बाल ब्रह्मचारी मानि श्री अमोलक ऋषिनी."
आहितेति वदेजा जेणं चउत्थस्स चंद संवच्छरस आदि सेणं तच्चरस अभिवडियरस पजवामणे अणंतरपच्छाकडे समए॥ तं समयं च चंदकेणं णवत्तेणं जोगं जोतेति ? ता उत्तराहि आसाढाहिं उत्तरा साढाणं तेरसमुहुन्ता सेरस वावट्ठी भागा मुहुत्तस्स वावट्ठी भाग च सत्तसट्ठिया छेत्ता सत्तावीस चुणिया भागा सेसा तं समयं चणं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोगं जोएति? ता पुणवसुणा पुणवमा दोणि मुहत्ता छप्पणं वावट्ठी भागा वावट्ठी भागं च सत्तसट्ठिया छेत्ता -ट्रिया चुणिया भागा सेसा ॥ ४ ॥ आदि है उस से अनंतर पश्चात् कृत समय में हीरा अभिवर्धन संवत्सर का पर्यवसान है. अहो भगवन् ! तीसरे अभिवर्धन संवत्सर के चार साय में कौनसा नक्षा की साथ योग करता है
अहो गौतम ! उस समय चंद्र उत्तरापाढा नक्षय की पाय योग करता है. यह नक्षत्र १३ मुहूर्त १३ भाग १६२ ये २७ चूरणिये भाग ६७ ये शेष रहे तब अभिवः, मत्सर संपूर्ण होवे. उस समय सूर्य कौनसा , नक्षत्र की साथ योग करता है ? अहो गौतम उस समय सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र की साथ योग करना है. यह नक्षत्र दो मुहूर्न ५६ भाग ६२ ये ६० चूणिय भाग ६७ ये शेष रहे तब चंद्र नक्षता मूर्य की साथ और सूर्य नक्षत्र ३९ महून ६ भाग ६२ ये शेष रहे त तीसरा अभिपर्धन संवत्सर संपूर्ण हो. इस की विधि पहिले जसे जानना. परंतु यहां सैंतीस से धृवराशि को गुणना क्यों कि तीसरा अभिवर्धन संवत्सर
•प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी
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