Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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समास-सूत्र षष्ठ उ
अंगुलाति पोरिसि भवति ॥ १८ ॥ वासाणं बितियं मासं कति णक्खसा पेति ता चत्तारि णक्खत्ता णेति तजहा धणिट्टा, सतभिसया, पुव्त्रभद्दवया, उत्तरभद्दवया एवं एणं अभिलावेणं जहेब जबूद्दीत्र पण्णत्तीए, तब एत्यपि भाणियव्वं जाव
॥
पत्र में जो तिथि को पौरसी छाया जानने की इच्छा हो यह उनका अंक रखना, जो आंक आवे उसे पनरह से जितनी तिथि गइ होवे उतनी मिलाना. अब अयन के १८३
मंडल हैं, उन में चंद्र की तिथि ४८६
हो, इस से आये हुये आंक को १८६ से भाग देना, और जो भाग का अंक हो उसे सम्यक् प्रकार से जानना || १ || यदि विषम आंक अर्थात् १-३-५-७-१ आये और शेष रह जाये तो दक्षिण अयन पूर्ण कर उत्तरायण वर्तती है, और सम आंक २-४-६-८-१० आने और शेष रहे तो उत्तरायण पूर्ण होकर दक्षिणाय जानना विषयक आव और शेष रहे नहीं तो दक्षिणायन जानना. और उत्तरायण जानना भोग देने लब्धांक कुच्छ भी आवे नहीं रहे तो दक्षिणायन जानना || २ || जो शेष राशि रहे वह अयन की गत तिथि जानना. उसे चार गुना करना और पर्व के चतुर्थ भाग से भाग देना. उस में जो लब्धांक आवे सां अंगुल और शेष रहे सो [ भाग. इस तरह पौरसी की क्षय व वृद्धि जानना || ३ || दक्षिणायन में पुरुष छाया का दो पांच ऊपरसे
सम अंक आवे और शेष राशि
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तब पूर्व युग की आदि से जितने प गुणाकार करता. और
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* दशवा पाहुडे का दशवा अंतर पाहुडा
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