Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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एवं श्यामो-अभिणिआदिय सत्तणक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता तंजहा-अभिए जाव रवति॥ता असिणीआदिया सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता तंजहा-असिणि जाव पुण्णवमु ॥ ता पुस्मादियाणं सत्तणखत्ता अवरारिया पण्णत्ता तजहा- पुस्सी जाव चित्ता । ता साति याणं सत्तणक्खत्ता उत्तरदारिया प्राणत्ता तंजहा-साति जाव उत्तरासाढा ।। इति दसम पाहुडस्त एकवीसमं पाहड सम्मत्तं ॥ १० ॥ २१ ॥ ता कहते णक्खत्त विजये आहितति वदेजा ? ता अयणं जंबदीवेदीचे जाव
परिक्वेकेणं ता जंबूद्दीवेण दीव दोचंदा पभामंसुवा पभासतिवा पभास्सिस्सतिवा ।। इस कथनको एसा कहते हैं कि अभिजिनसे रेवती पर्यंत सात नक्षत्र पूर्वद्वार वाले हैं, अश्विनीसे पुनर्वसु पयत है सात नक्षत्र दक्षिण द्वार वाले हैं, पुष्य से चित्रा पर्यंत सात नक्षत्र पश्चिमवार वाले हैं, और स्वाति से उत्तराषाढा पर्यंत सात नक्षत्र उत्तर द्वार वाले हैं. यह चंद्र प्रज्ञप्ति मूत्र का दशवा पाहुड का इक्कीसवा अंतर पाहडा संपूर्ण हुवा ॥ १० ॥ २१ ॥ है अब चावीसवे अंतर पाहुडे में नक्षत्रादिकके निर्णय की वक्तव्पता कहने हैं. अहो भगवन् ! आपके है मत में नक्षत्र का विजय सो निर्णय स्वरूप.किस प्रकार कहा है ? अहो शिष्य ! यह जम्बूद्वीप नामक
40 दशवा पाहुडे का बीसा अंतर पाहुडा 4282
अर्थ
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