Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ सप्तदश-चंद्र प्रज्ञप्ति मूत्र षष्ठ-उपाङ्ग 428
छब्बीसंच वावट्ठीभागा मुहुत्तस्स बावट्ठी मागंच सत्तसट्रिया छेत्ता चउप्पण्णं चुणिया भागासेसा तं समयं चणं सूर केण णक्खत्तेणं जोगं जोएति वा पुण्णवसुहिं पुणवसुण सेोलस मुहत्ता अट्ठयावावट्ठी महत्तस्स भागा वावट्ठी भागं च सत्ससट्ठीया छत्ता
वीस.चुणिया:भागा सेसा ॥ १४ ॥ ता ऐतीसणं पंचण्डं संबच्छराणं चरम वावट्ठी पुनर्वसू २१६ मुहूर्न १२ भाग ६२ या शप रहे तब बारहवी पूर्णमा मंपूर्ण होवे. यां धृवगशि को बारह गुना करना ॥ १४ ॥ इन पांच संवत्मर में चरम यामठवी पूर्णिमा को चंद्र कौन सा नक्षत्र की साथ योग है करना है ? बासठवी पूर्णिमा को चंद्र उत्तगप ढा नक्षत्र की साथ योग करता है. उत्तराप ढा नक्षत्र के चरिम समय में योग कर के बामट्ठव मास पूर्ण के . उस समय सूर्य कौन से नक्षत्र की साथ योग करे? है उस समय सर्य पुष्य नक्षत्र का साथ योग करे. यह पुष्य नक्षत्र १९ मुर्न ४३ भाग ६२ य तेवीम भाग १६७ य शेष रहे और सूर्य नक्षत्र २६४ मुहून शेष रहे तब चासठया पूर्गप्र स संपुर्ण होवे. इम में प्रथम धृव १२
राशिको ६२ से गना करना ॥ १५ ॥ अहा भगवन् ; इन पांद संलर में प्रथम अमावास्या चंद्र कौंन से नक्षत्र की माथ योग कर के पूर्ण करे ? इन पांच संवत्सर में प्रथम अमावास्या अश्लषा नक्षत्र की साय योग कर के पूर्ण करे यह अश्लपा नक्षत्र एक मुहूर्त ४० भाग ६२ ये ६६ भाग ६७ या येष रहे . तब प्रथम अमावास्या संपूर्ण होय, इस की विधि बताते है, प्रथन अमावास्या में अर्ध पास दो इस से दूसरी है
Hदशवा पाहुडे का बावीपा और पाहुडा
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