Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Net अनुवाइक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिज -
पण्णत्ता तेणं एव माहस तंजहा- अरिसणि जाव पुण्णवसु ॥ता पुसादिया है सत्तणक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता तजहा-पुस्तो जाव चित्ता ॥ ता सातिदियाणं सत्तणक्खत्ताणं अवरदारिया पण्णत्ता तंजहा- सात जाव उत्तरासादा ॥ अभितिदियाणं सत्तणखत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता तंजहा अभिजिते जाव रेवति ॥ ५ ॥ तत्थ जेते एव माहेस ता भराणआदियागं सत्तणखता पुत्वदारिया पण्णत्ता तेण एव माहंस तंजहा-भराण जाव पस्तो !! ता आसलेसादियाणं सत्तणक्णत्ता दाहिणदारिया पणत्ता तंजहा-असिलेसा जाव साति ॥ ता विसाहादियाणं सत्त णक्खत्ता अबदारिया पणत्ता तजहा-विलाहा जाव अभिए । ता सबगादियाणं सनणवत्ता
उत्तरदारिया पण्णत्ता तंजहा सवणे जाव असिणी एग एव माहंस ॥ ६ ॥ वयंपुण सात नक्षत्र पूर्णद्वार वाल कहे हैं उन का कथन इम तरह हैं कि अश्विनी मे पुर्नमु पर्यंत सात नक्षत्र पर्व द्वार वाले हैं. पुष्य सचित्र पर्यंत सात नक्षत्र दक्षिण द्वार वाले हैं, स्वाति में उत्तरापाढा पर्यंत स नक्षत्र पाश्च दर वाले हैं, और अभिजित रेकी पयंत मान नक्षत्र उत्तर दर वाले हैं. ॥ ५ ॥ जो ऐमा कहते कि भाणो आदिनान नक्षत्र पूदि वाले हैं जिनके नाम-भरणी यापत् पूष्य, अश्लेशदिमात नक्षत्र
दक्षि गदारवाल जिनके नाम. अश्लेषा यावत् स्वाति. विशाखादिमात नक्षत्र पश्चिमद्वारवाल हैं. जिनके नाम * विशाखा यावत् अभिजित और श्रवणदिसातनक्षत्र उतद्वारवाले हैं जिनके मान श्रेषण यावत् अश्विनः॥६॥हम
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवमायनी ज्वालापसाद जी .
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