Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
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नक्वत्ताणं कि सया पातो चंदेणं सद्धिं जोगं जोतेति... सया सायं चंदेणं सद्धिं जोगं जातति! किंसया दुहतो पविटित्ता चंदे महिं जोगं तेति? ता एए छप्पण्ण नक्खत्ता नो सया पातो चंदेणं सद्धिं जोगं जोएति को सया २. यं चंदेण सहिं मोगं जोएति नो सया दुहतो परिट्रित्ता देणं माहि जोगं जोतेति ! त्थि रातिदियाणं
बुड्ढावड़ए मुहुत्ताणंच चयोचवण त्या देह आभया, ता एतेणं दो अभिया मेंद्र की साय योग क... रितो
या. कार में चंद्र की साथ योग करते हैं, आर किन नक्षत्र सदैव प्रारकालाकार इन योतकार चंद्रमा की माथ योग करते हैं ?
अहो शिषः ! उक्त उत्पन्न नामदेव पल काल में योग ही करते हैं, वैस ही सदैव संध्या काल में येन नहीं करते है सीव प्रात व संध्या काल इन दोनों कल प्रवेश कर चंद्रकी साथ योग. नहीं करते। रात्रि दिन की हानि नहीं होती, कों की जब दिन में तीन मुहूर्न की वृद्धि होवे ला इतना ही मुहूर्त की रात्रि में हानि होरे. और रात्रि में तीन मुहू की वृद्धि हो तब दिन में हानि हो. इस से सदैव प्रातः काल में और सदैव संध्या काल में निक्षत्र योग नहीं करते हैं. इन में अभिजित नक्षत्र का प्रतिषेध है अर्थत् दो अभिजित नक्षत्र युग में
म्माल गपी अमावास्या संपूर्ण करे. अभिनित नक्षत्र के ६ मुहूर्त, ३७ भाग ६२ ये और ४७ भाग ।
% दमचा पाहुड का बवासवा अंतर पाहुडा
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