Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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दश-चंद्र प्रज्ञप्त मूत्र षष्ठ-उपाङ्ग कम
मंडलं एगं चउवीसेणं एणंछत्ता पुरस्थिामल्लसि चउभाग मंडलंसि सत्तवासभागे उवावाणिवेत्ता अठ्ठावीसतिमं भागं विसह छेत्ता अारस भागे उवाणिवेत्ता तिहिं भामुहिं दाहिय कलाहिं दाहिण च उभाग मंडलं मसंपत्त, एत्थणं । २रे चरम पानी पण मासिणं जोग जोतेति॥८॥एवं जव अभिलावणं च स पुषणमातिया मानियाओ तेणं चेव अभिलावणं अमावसतावि भागियवाओ तंजहा-पढमा वितिया दुवालसा,
एवं खलु एतेणउवाएक ताते २ अमावासंठ.णाओ मंडलं एग चउवाले सतेणं छेत्ता भाग करना, पूर्णदिक वृशि में मंडल के चौथे भाग एकतीस भाग गरे, म २७ भ ग और 14 अट्ठावीसत्रे भाग के २० भाग में के १८ भाग व दो पला लेकर शेष ३ भ ग १२४ वे और १ भाग शबीसया और एक कला,इतना शेष रहे उम स्थान प्रर्य चरम बासठवी पूर्णिमा योग करके पूर्ण करे.
मर्य अर्ध मंडल १८३० करता है, दोनों सूर्य मिलकर संपूर्ण मंडल ९१५ करंस हैं।॥ ८ ॥ ऐहो जिस अभिलाप से चंद्र पूर्णिमा संपूर्ण करे सो कहा, वैम ही अपावास्या का भी कहना. जैसे-प्रथम अमावास्या युग की चरम ब.सठयो अमावास्या से जानना, दूसरी अमावास्या युग की पहिली अमावास्या से कहना. बारहवी अमावास्या इग्यारवी अमावास्या से कहना, इसी तरह उन २ अमावास्या के स्थानक से में
480 दशरा पाहडे का वायासबा अंतर पाहुडा 488
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