Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तायंचियं चीयालीसं अमावासं जातेति नो .चवणं पुण्णमासिणं॥ ६ ॥ तत्थ खलु FF इमाओ पुण्णमासिणीओ बबट्ठी, अमावासाओ बावट्ठी पण्णत्ताओ ॥ता एएमिणं अहं
संवच्छराणं पढमं पुण्णकासिणं चंदे कंसि दस जोगं जोएति,तासिणं जंसिकंदपदे चरम वावट्ठी पुण्णमासिणी जोगं जोतेति ताओणमामिणिओ ठाणाओमंडलंएगचउर सतणं छेत्ता बत्तीसं भागे उववाणिवेता एत्थरो चदे पढम पुणमासिणि जागं जोतेन्।ि
ता एतसिणं पंचण्हं संबछराणं दोचं पुनासिणं चंद कोस देससिजोगं जोतेतिता अधिक
६५ ये गये पीछे चुम्मालीसवी अमावास्या संपूर्ण करे. परंतु सूमिमा संपूर्ण नहीं करे ॥६॥ एक यु 1Eबासठ पूर्णिमा व य स अमावास्याओं की हैं. वहां गौतम सामी प्रश्न करते हैं कि इन पांच संवत्सर ।
प्रथम पूर्णिमा को चंद्र मंडल के कितने देश भांग में योग करके संपूर्ण करे ? उत्तर-अहो शिष्य ! जिस डल के देश भाग में चंद्रमा युग की वासंठवी पूर्णिमा योग कर संपूर्ण करे उम पूणमा के स्थानक से एक मंडल को १२४ भाग से छेद कर बत्तीस भाग में चलता हुवा चंद्रपा युग की प्रथर पूर्णिमा संपूर्ण करे. इन पांच संवत्सर में दूसरी पूर्णिमा को चंद्रमा मंडल को कितने विभाग में योग कर के संपूर्ण करे ? उत्तर-जिस विभाग में चंद्रमा पहिली पूणमा योग करके संपूर्ण के उस पूर्णिमा के स्थान से एक मंडल के १२४ भाग करके उनमें से बत्तीस भाग अनुक्रप
कम अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
प्रकाशक-राजावादर लाकाखममहायजी बारापमादजा
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