Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पर अनुवादक-बालन नचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी
णक्खत्ते सतसठीचारा चंदेणं साई जोगं जोतेति ॥ एवं जाव उत्तरा साढा णक्वत सतसदिचारे चंदणसाई जोगं जांतति ॥ ता कहते आइच्च चारा आहितेति वदेजा? ता पंच संवच्छरागं जुगे अभिए णक्खत्ते पंच चारे सूरणं सद्धिं जोग जोएति ॥ एवं जात्र उत्तरा साढा नक्खत्त पंचचार सरणं सडिं जोगं जोएति ॥ इति दसमस्स अट्रारम पाहडं रम्मत्तं ॥ १० ॥ ॥ १८ ॥ * * * * ता व्हते मासा आहितेहि वदेजा ? ताएगमगेरुमणं संवच्छरस्स बारसमासा
एण्णता, तसिणं दुविहा जाम धिजा पण्णता तंजहा लोइयाय, लोउतरियाय ॥ भगवन् ! मंद साथ नपत्र कसे चार चलते हैं? अहो शिष्य! अभिनित नक्षत्र चंद्रमा की माथ एक युग में, १६७ वरसे चल च, श्रवण नक्षत्र १७ चार चाल चले यावत् उत्तर पाढा नक्षत्र एक यग में ७ बार चंद्र कीवाय यान चले अब आदित्य चार किन कहते हैं ? अहो शिष्य ! पांच मंवत्सर का एक युग :दावे. ऐसे एक या में मजित नक्षत्र पांच बार सूर्य की माथ योग करे, ऐसे ही यावत् उत्तराषाढा नक्षत्र एक था में पांच बार पूर्वी साथ य ग करे. रहदशवा का अठारवा अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवः।।१०॥१८॥ अब गोसना पाहड! कदल. अहो भगवन् ! किस प्रकार पाम (महिने) कहे है? अहो शिष्य एक संवत्सर के बारह मास क है. इन बारहमान के दो प्रकार के नाम करे . तयथा-लाकिक नाम व लोकोत्तर
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसदाजी .
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