Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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11 च्छरैसंवच्छर अट्ठाविसतिबिहे पण्णते तंजहा-अभिये सवणे जाव उत्तरासाढा ॥ जाव
सणिच्छरे । महाग्गाह तीसेहेसंवच्छरेहिं सवणक्खत्तमंडलं समाणेति ॥
इति दसमस्स वीसमं पाहुड सम्मत्तं ॥ १० ॥ २० ॥ पानु कटुक ह.३. शीत तापादिक बहुत होने और रोगादिक परिणमे. ऐसा जिम संवत्सर में हाये वह चंद्र संबलर हो. व तीसरा ऋतु अथवा कर्म मंवत्मर के लक्षण कहते हैनस संवत्लर में वनस्पति विषय काल में अंकूर वाली होवे, ऋतु विना पुष्प फयदि हारे. सम्यक प्रकार में वर्षा नहावे उसे कर्म संवत्सर कहते हैं. अदित्य संवत्सर का लक्षण कहते हैं-पृथ्वी, पानी, पुष्प फल दिको रम देवे, अल्प वर्षा से -बहुत धान्यादिक सम्यक प्रकार से उत्पन्न हाये, इम को आदित्य संवत्सर कहते हैं. अब अभिवर्धन संवस्तर कहते हैं. जिम में सूर्य के तेज से तप्त क्षण, लव, दिन व ऋतु परिणमत होवे, मब उचा नीचा स्थान जल से परिपूर्ण होवे वह अभिवर्धन नंवत्सर है. अब शनिश्चर संवत्सर का कथन करते हैं. शनिश्चर संवत्मर अठाइस प्रकार का कहा है तद्यथा अभिजित श्रवण यावत उत्तराषाढा. अठाइम नक्षत्र शनिश्चर महाग्रह तोम मंवस्तर में मब अढाइम नक्षत्र मंपूर्ण करे. यह नक्षत्र संघस्सर ३२ दिन का है. इमे तीसगुणा करने मे १८३२ दिन में शानेश्वर महाग्रह य ग अंगाकार कर अठाइस नक्षत्र संपूर्ण कर. यह चंद्र प्रज्ञप्ति भूत्र का दशवा पाहुडा का बीसमा अंतर पाहुडा संपूर्ण हुग ॥१॥२०॥. .
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिर्ज
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव महायजी ज्वालाप्रमादजा
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