Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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रेवतिहि जलयर मंसं भौचा कज साहेति ॥ २६ ॥ अस्सिणिहिं तित्तरमसं भोच्चा कजं साहेति अहवा वट्टक मंसंभोच्चा ॥ २७ ॥ भरणीहिं तिलतंदुलयं भोच्चा कजसाहति ॥ इति दसमस्स सत्तरमं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १० ॥ १७ ॥:, :, ता कहते चारा आहितेति वदेजा ? तत्थ खलु इमे दुविहा चारा पण्णत्ता तंजहा आइच्चा चाराय, चंद चाराय ॥ ता कहते चंद चारा आहितेति वदेजा ? ता पंच
संबछरिएणं जुगे अभिए णवत्ते सतसट्ठीचार चंदेण साई जोगं जोतेति, सवणे नक्षत्र में तीली का तेल अथवा चांवल का भोजन करने से कार्य सिद्धि होवे. इस तरह अठाइस
नक्षत्रों के भोजन का विषय जैसा अन्य स्थान देखने में आया वैसा ही लीखा है. टीकाकार श्री मलयाई एमिती आचार्य ने इस को टीक नहीं की है. तत्केवलिगम्य. परंतु जो मांसादिक का आहार करेगा वह अनंत
संसार बढाने वाला होगा. इस से इन अठाइसह नक्षत्रों कोई जानने योग्य है, कोई आदरने योग्य है और कोई त्याग करने योग्य भी हैं. विशेष फेवलि गम्य. यह दशवा पाहुडे का सतरवा अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवा१०॥१७॥ है अब दशवे प हुडे के अठारवे पाहुडे में चंद्र सूर्य के चार गतिका कथन कहते है. अहो भगवन् ! आप के मत में चंद्र सूर्य की साथ नक्षत्र का चार किस प्रकार कहा है ? अहो शिष्य ! दो प्रकार का चार कहा है. १ आदित्य का साथ नक्षत्र चार चले और चंद्र की साथ नक्षत्र चार चले. इस में अहो
488 दसवा पाहुडे का अठारहवा अंतर पाहुडा
अर्थ
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